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________________ Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements "मेरी भावना" की भाषा अत्यन्त सरल, सुवोध, सरस, स्पष्ट, प्रवाहवती, सुष्ठु और शुद्ध है। वह भावाभिव्यक्ति में पूर्ण सक्षम है। पाठक को कहीं भी शब्द कोष खोलने या मानसिक व्यायाम करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। भाषा का प्रवाह सरिता की तरह अविरल आगे बढ़ता हुआ पाठक को भावानुभूति की शीतलता प्रदान करता है। जैसे शरदकालीन सरोवर के स्वच्छ अन्तर्वर्ती पदार्थ स्पष्ट झलकते हैं, वैसे ही 'मेरी भावना' में भाव सौन्दर्य साफ-साफ झलकता है। भाषा की ऐसी सरलता और सादगी तथा भावों की स्वच्छता और निर्मलता विरल 'काव्यों में ही मिल सकती है। इसके कवि 'युगवीर' की जितनी प्रशंसा की जाये, कम है।' 116 'सरलता और सादगी का अपना संसार है। सरल होकर हम सबके होते हैं, क्रमश: होते रहते हैं' किन्तु जटिल होकर या तो हम खुद के हो पड़ते हैं, या कुछ गिने-चुने लोगों के सरल होने का सीधा मतलब है सार्वभौम होना । 'मेरी भावना' सरल शब्दों में, अर्थों में है इसलिए सार्वभौम है। इसमें हम लोक हृदय की स्वस्थ धड़कन सहज ही बिना किसी स्टेथस्कोप के सुन सकते हैं। समता का जो संगीत हमें 'मेरी भावना' में सुनाई देता है, वह अन्यत्र सुनने को नहीं मिलता। 28 डॉ. नेमीचन्द जैन, सरल और सीधी भाषा में भावों का इतना उन्नत होकर प्रकट होना बहुत ही कम स्थानों पर संभव हो पाता है। यहाँ न तो कल्पना की उड़ान है और न प्रतीकों की योजना पर भावों की प्रेषणीयता इतनी प्रखर है कि जिससे प्रत्येक पाठक भावगंगा में निमग्न हो जाता है। 29 डॉ. नेमीचन्द ज्योतिषाचार्य (ब) शैली - शैली ही व्यक्तित्त्व है। इससे हम कवि और काव्य की पहचान कह सकते हैं। कवि श्री युगवीर ने अपने भाव संसार को मुख्यतः भावनात्मक शैली में व्यक्त किया है।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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