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________________ पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व "यहाँ आपमें उस कल्याण कामना का उदय हुआ है जो बैर को शान्त करती है और मन के भीतर जन कलयाण की हजारों-हजार शीतल झिरियां खोलती है।" 16 दशम् छन्द में (ईति-भीति व्यापे . किया करें) कवि ने सर्वोदयीकल्याणी भावना को प्रकट किया है। "यहाँ आप आत्मोदयी धरा पर खड़े हैं सर्वोदय के संगीत में झूम-झूम उठे हैं। आपने आनन्द को सीमित नहीं किया है, असीमित करा लिया है। आप सर्वहित की गोद में एक निष्कपट शिशु की तरह भोली किलकारियां भर रहे हैं।" " 111 अंतिम और ग्यारहवें पद में (फैले प्रेम....... . सहा करें) कवि ने वस्तुस्वरूप को विचार कर सुख-दुःख को खुशी-खुशी सहन करने का अभिप्राय व्यक्त किया है। " यहाँ आपने वस्तु स्वरूप को खोजने / पाने की अपनी यात्रा मे सफलता प्राप्त की है और जीवन के उस मर्म को समझ लिया है, जो बड़ी मुश्किल से आदमी के पल्ले पड़ता है ।' * 18 ******** " इस प्रकार "मेरी भावना" में हम लोक हृदय की स्वस्थ धड़कन सहज ही बिना किसी स्टेथस्कोप के सुन सकते हैं।" समता का जो संगीत हमें "मेरी भावना" में सुनाई देता है, वह अन्यत्र सुनने को नहीं मिलता। अतः "मेरी भावना" एक सार्वभौम रचना है। 19 "मेरी भावना" की फलश्रुति "यदि मेरी भावना" को हम अपने भीतर पर्त-दर-पर्त खोलते हैं तो फिर संसार की सारी निधियां स्वयंमेव हमारे चरणों में आ बैठती हैं अत्यन्त कृतज्ञ भाव से । यह है मेरी भावना की फल- श्रुति, यह है "मेरी भावना" का वरदान। " 20 - डॉ. नेमीचंद जैन, 5. " मेरी भावना" : सबकी भावना रचना में शीर्षक का महत्वपूर्ण स्थान होता है। मानव शरीर में जो स्थान मुख का है, रचना में वही स्थान नाम या शीर्षक का होता है। " वक्त्रं " वक्ति
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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