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________________ 109 पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व सार भर दिया है। "इसकी 44 पंक्तियों में बड़े-बड़े पौधों और शास्त्रों से कहीं अधिक बल-स्फूर्ति है।" 3. "मेरी भावना" का वर्ण्य विषय - "मेरी भावना" आकार में तो लघु है, किन्तु इसमें सम्पूर्ण धर्मों। धार्मिक ग्रन्थों का सार समाहित है। इसके "गागर में सागर",कह सकते है। डॉ नेमि चन्द्र के शब्दों "मेरी भावना में न सिर्फ जैनाचार का सार है, बल्कि संसार के तमाम धर्मों का नवनीत है। " कवि ने मेरी भावना में अनेक आर्ष ग्रन्थों का सार भर दिया है। इसमें हम रामायण, महाभारत और गीता का सार प्राप्त कर सकते हैं तो दूसरी ओर कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, पदमनंदि प्रभृति आचार्यों के वचनों का सार भी। इसमें कवि ने विश्व बन्धुता, कृतज्ञता, न्यायप्रियता एवं सहन शीलता का सुन्दर चित्रण किया है। प्रथम पद में (जिसने राग-द्वेष कामादिक जीते - उसी में लीन रहो) कवि ने सर्वमान्य देव का वीतराग स्वरुप अंकित किया है। "आप वीतरागता के चरणतल में नतशीश हैं। नतशीश ही नहीं हैं बल्कि वह जहां कहीं भी, जिस किसी नाम से हैं उसे श्रद्धा पूर्वक प्रणाम कर रहे हैं।'' द्वितीय पद एवं तृतीय पद के पूर्वार्द्ध में (विषयों की आशा नहिं सदा अनुरक्त रहे) कवि ने आदर्श गुरु/लोकपुरुष के स्वरूप का शब्दांकन किया है तथा उसके सत्संग, उसके ध्यान और तद्धत. आचरण की भावना को अभिव्यक्ति दी है। __ तृतीय पद के उत्तरार्द्ध में (नहीं सताऊँ .....पिया करुं) पांच पापों के त्याग को प्रकट किया गया है। "इसमें आप आत्मवत् सर्वभूतेषू" की प्रक्रिया में है। अत: आप न तो किसी को कष्ट देना चाहते हैं, और न एक पल को झूठ बोलना चाहते हैं। 10 चतुर्थ पद में (अहंकार का भाव .......... उपकार करूं) कवि ने चार कषायों - क्रोध, मान, माया, लोभ के त्याग को शब्दांकित किया है। यहाँ आप अहंकार को सर्वांग विसर्जित कर क्षमा-धरती पर आ खड़े हुये हैं। क्षमा
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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