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________________ 101 - पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व वर्तमान में अधिकाधिक साहित्य सृजन एवं प्रकाशन की होड़ कतिपय साधन सम्पन्न महानुभावों/साधकों में लगी है। अधिकाधिक प्रकाशन की भावना में सार्थक/सारगर्भित प्रकाशन का बोध लुप्त हो गया है। ऐसे महानुभावों को पं. मुख्तार की साहित्य साधना दिशा बोध कराती है कि साहित्य सृजन/ प्रकाशन गुणात्मक कालजयी हो, न कि परिमाणात्मक-सामायिका पं. मुख्तार सफल एव तार्किक लेखक के साथ ही सहृदय एवं यथार्थपरक कवि भी थे। वीतरागता, विश्वबन्धुत्व, आदर्श मानव जीवन, अछूतोद्वार, भक्तिपरक स्तोत्र आदि मानव जीवन को महिमा-मंडित करने वाले विषयों पर उन्होंने भावप्रण कविताएँ हिन्दी और संस्कृत भाषा में शब्दांकित की। ये कविताएँ "युगभारती" नाम से प्रकाशित हुई। मेरी भावना-जन भावना उनको हिन्दी कविताओं में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं बहुपठित कविता "मेरी भावना" में कवि ने पक्षपात की भावना से ऊपर उठकर प्राणीमात्र की शांति, उत्थान और उन्हें अध्यात्मिक ऊँचाईयों तक पहुँचाने वाले वीतरागदर्शन, उसकी प्राप्ति की प्रक्रिया-प्रतीक तथा आत्मसाधक साधु-श्रावकों की भावना और आचरण का हृदयग्राही वर्णन किया है। इसका प्रयोजन वस्तुस्वरुप के भावबोध से उत्पन्न प्राणीमात्र के प्रति मैत्रीभाव, पर्यावरण-रक्षा, लोकोपयोगी जीवन-दर्शन, सहजन्याय एवं धर्माधारित राज्य व्यवस्था तथा वीतरागता की प्राप्ति का सर्वकालिक/सार्वभौमिक लक्ष्य रेखांकित करना है। जिस प्रकार स्व श्री चन्द्रधर शर्मा गुलेरी"उसने कहा था" कहानी लिखकर अमर हो गये, उसी प्रकार "मेरी भावना"कविता लिखकर पं. जुगल किशोर मुख्तार अमर हो गये। अंतर मात्र इतना है कि जो प्रसिद्धि एवं साहित्य में स्थान गुलेरी जी को मिला, मुख्तार सा. सामाजिक परिवेश में ही सीमित रह गये। किसी अन्य धर्मावलम्बी की यदि वह रचना होती तो वह राष्ट्रगीत जैसी "राष्ट्रभावना" या "जन भावना" के रूप में प्रसिद्ध होती। मेरी भावना-सार्थक नाम जैसा भाव वैसी क्रिया, जैसी क्रिया वैसा फल, यह सर्वश्रुत है। अर्थात् भावानुसार फल मिलता है। इस मनोवैज्ञानिक तथ्य के आधार पर मानव
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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