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________________ प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व 99 समस्त पेयों को विगर्हणीय माना है। यहाँ न तो कल्पना की उड़ान है, और न प्रतीकों की योजनायें, पर भावों की प्रेषणीयता इतनी प्रखर हैं, कि प्रत्येक पाठक भावगंगा में निमग्न हो जाता है। इसी वैशिष्ट्य के कारण मेरी भावना का विभिन्न पाठशालाओं, विद्यालयों में राष्ट्रीय गान के रूप में पाठ होता है। कई भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है। प्रत्येक पद्य का सचित्र लेश्याओं सहित वर्णन एवं चित्रण भी हमें प्राप्त होता है। लगता है मेरी भावना के माध्यम से युगवीर जी वात्सल्यभाव से हमारे लिए प्रेम और सहअस्तित्व का परामर्श निरन्तर प्रस्तुत कर रहे हैं। विनाश को टालने और शान्ति स्थापना के लिए कहीं गीता और रामायण, कहीं पुराणों एवं संहिताओं में से प्रकट होकर वे पुण्य परामर्श प्रस्तुत कर रहे हैं। कहीं ऋषियों, मुनियों एवं संतों की वाणी का उपदेश एवं शाश्वत सन्देश हमें उनके काव्य में दिखाई देता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो सहज मानवीय प्रेरणा का रूप धरकर, वह हमारे अन्तस में बार-बार अवतरित होकर भांति-भांति से हमें अनुप्राणित करने का प्रयत्न कर रहे हैं। आज सामान्य व्यक्ति के जीवन में शान्ति का अभाव होता जा रहा है। जीवन के संघर्ष के दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि हमारी सारी दौड़ भौतिक समृद्धि के लिए समर्पित होकर रह गई है। आज मानवीय मूल्यों का इतना ह्रास हो गया है कि वैयक्तिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन में सर्वत्र असत्य विकृतियाँ उत्पन्न हो गई हैं। ऐसे में जीवन की, राष्ट्र की हर समस्या का समाधान एवं संकल्पों की दृढ़ता देने वाले कालजयी परामर्श मेरी भावना में प्रस्तुत किये गए हैं। इसमें सन्देह नहीं कि कवि का यह छोटा-सा काव्य मानव जीवन के लिए एक ऐसा रत्नदीप है जिसका प्रकाश सदा अक्षुण्ण रहेगा। सन्दर्भ - सूची 1 मेरी भावना पद्य । 2. मेरी भावना पद्य 3 3. मेरी भावना पद्म 4
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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