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________________ जुगलकिशोर मुसार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व शंका-समाधान पूर्वक विषय का पूरा स्पष्टीकरण करते हुए रोचकता एवं प्रवाह उत्पन्न करना भाष्यकार के लिये अनिवार्य है । अतलतलस्पर्शी पाण्डित्य के साथ गहराई में छिपे हुए तथ्यों का विश्लेषण-विवेचन भी अपेक्षित रहता है। भाष्यकार की सबसे प्रमुख विशेषता, तटस्थता और ईमानदारी की है। अद्यावधि आपके द्वारा (युगवीर के) प्रणीत निम्न भाष्य उपलब्ध हैं - 1. स्वयंम्भूस्तोत्राभाष्य 2. युक्त्यनुशासन भाष्य, 3. रत्नकरण्ड श्रावकाचार भाष्य 4. देवागम - आप्तमीमांसा भाष्य 5. अध्यात्मरहस्य भाष्य 6. तत्त्वानुशासन भाष्य 7. योगसार प्राभृत भाष्य 8. कल्याणमन्दिरस्तोत्रभाष्य 87 युगवीर की भाष्य शैली की निम्नलिखित विशेषतायें हैं 1. अभिव्यंजना शक्ति की प्रबलता 2. शब्दों का उचित सन्निवेश 3. अभिघागत शब्दों की स्पष्ट व्याख्या 4. यथार्थता 5. वैयक्तिकता भावों विचारों की प्रेषकीयता । 6. औचित्य का संयोजन 8. सामग्री चयन में अत्यन्त सतर्कता । इतिहासकार के रूप में मुख्तार सा. ऐसे प्रथम इतिहासकार है जिन्होंने विद्यानंद और अकलंक से पात्रकेशरी का पूर्ववृर्त्तित्व सिद्ध किया है। ऐतिहासिक रचनाओं में तत्त्वार्थाधिगम भाष्य और उसके सूत्र सम्बन्धी शोध निबन्ध है | कार्तिकेयानुप्रक्षा और स्वामिकुमार नाम ऐतिहासिक लेख आपके मौलिक शोध है। मुख्तार सा. की कथन शैली तटस्थ इतिहासकार की है। मुख्तार जी ने जैन साहित्य पर कई दृष्टियों से अभिनव प्रकाश डाला है। पत्रकार के रूप में किसी भी समाज के विकास में पत्रकारिता का महत्वपूर्ण स्थान होता है। पत्र पत्रिकाओं का साहित्य, स्थायी साहित्य से कम मूल्यवान नहीं होता है। पं. जुगलकिशोर जी का पत्रकार जीवन एक जुलाई 1907 से प्रारम्भ हुआ जो आजीवन जारी रहा । अतः श्रम एवं अध्यवसाय जीवनोत्थान के लिये आवश्यक गुण हैं हमें गुणों का समवाय आ. मुख्तार सा. के व्यक्तित्व में प्राप्त होता है। उनका मस्तिष्क ज्ञानी का, हृदय योगी का और शरीर कृषक का था । निःसन्देह मुख्तार सा. के व्यक्तित्व में उदात्त भावना तथा कृतित्व में ज्ञानराशि प्रवाहित है। उनके द्वारा की गई साहित्य की साधना जन-जन में ज्ञान धास को प्रवाहित करती रहेगी। {
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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