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________________ _____ - प. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व निःसन्देह कहा जा सकता है कि ज्ञानपीठ की स्थापना से पूर्व यही एक ऐसी दिगम्बर संस्था थी, जिसमें अनुसंधान और प्रकाशन दोनों कार्य एक साथ सम्पन्न होते थे। पं. जी ने अपनी सारी सम्पत्ति ट्रस्ट को दे दी। कवि के रूप में-मुख्तार जी की कवितायें भारती का श्रृंगार हैं। आपके काव्य में माधुर्य का मधुर निवेश प्रसाद की स्निग्धता, पदों की सरसशय्या, अर्थ का सौष्ठव, अलंकारों की अनुपम छटा सर्वत्र देखी जा सकती है। आपके कवित्व में कला पक्ष की अपेक्षा भाव पक्ष अधिक मुखर है। मानव हृदय की परिवर्तनशील प्रवृत्तियों का चित्रण संस्कृत वाविलास में मुखरित है। उनकी भावना है कि समन्तभद्र अपनी वाणी के द्वारा हमें सन्मार्ग प्रदान करें-यथायद् भारती-सफल-सौख्य विद्यायिनीद्वि तत्व-तरूपण-परा नयशालिनी वा। युक्त्याऽऽगमेन च सदाऽप्य विरोधरूपा सदृर्त्य दर्शयतु शास्तृसमन्तभद्रः ।। 'मदीयाद्रव्यपूजा' भाव की दृष्टि से उच्च कोटि की कविता है। कवि ने वीतरागता को ही परम उपास्य कहा है। विजयी प्रभु को उपास्य बताते हुए उन्होंने लिखा है "इन्द्रिय विषय लालसा, जिसकी, रही न कुछ अवशेष। तृष्णा नहीं सुखा दी सारी, घर असंग व्रत वेष॥" कवि का रुपालंकार का प्रयोग भी दृष्टव्य हैधर्मामृतपी, सभी भव्य चातक हर षाये, आन्दोलित थे हृदय कहत कुछ बन नहीं आवे। हे याऽऽदेय विवेक लहर थी जग में छाई, निजकर में स्वोत्थान पतन की बात सुहाई ॥ राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत मेरी भावना के कारण मुख्तार जी चन्द्रधर शर्मा गुलेरी के समान अमर रहेंगे। उनकी मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ भावना के कारण कहा जा सकता है
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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