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________________ 82 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements "मानव जीवन संघर्षों की, एक मधुर मुस्कान है। पग-पग पर जिसकी लहरों में, एक नया तूफान है। तूफानों के बीच भंवर में, फंसता जब इन्सान है। फिर भी धैर्य नहीं जो खोता, बनता वही महान है।" उनके जीवन की सफलता के साधन, साहस, धैर्य और पुरुषार्थ हैं। अस्वस्थ अवस्था में भी आप अपनी कलम को अनवरत रूप से प्रवाहमान ‘रखते थे। बाबू छोटेलाल ने मुख्तार सा. जैसी जैन विभूति का मूल्यांकन किया और कलकत्ते में वीरशासन महोत्सव' का आयोजन कर उन्हें 'वाङ्मयाचार्य' की उपाधि से विभूषित किया। उन्हीं के सहयोग से भारत की राजधानी में 'वीर सेवा मंदिर' का विशाल भवन निर्मित हो गया। इस ट्रस्ट से देवागम स्तोत्र एवं तत्वानुशासन जैसे कई ग्रन्थ प्रकाशित हुए। वास्तव में मुख्तार सा. वे पीठाध्यक्ष थे, जो जहाँ बैठ जायें वहीं पर एक ज्ञानतीर्थ खड़ा कर देते थे। वे जहाँ रहते थे, वहीं शोध प्रतिष्ठान स्थापित हो जाता था। इसीलिये उनक निकट सम्पर्क में आने वाले पूज्यपाद पं. गणेशप्रसाद वर्णी, पं. नाथूराम जी प्रेमी, बाबू सूरजभानु जी वकील, ब्र. पं. चन्दाबाई जी, आरा, श्री बाबू राजकृष्ण जी दिल्ली, श्रीमान् साहू शान्तिप्रसाद जी कलकत्ता आदि प्रमुख है। इन सभी व्यक्तियों पर मुख्तार सा.की ज्ञानसाधना का स्थायी प्रभाव है सभी इनके पाण्डित्य की प्रशंसा करते हैं। भट्टारकों का भण्डाफोड़-जैन धर्म में भट्टारकों का स्थान अत्यन्त सम्माननीय रहा है। कुछ भट्टारक ब्राह्मण जैन हुए वे प्रतिभा से नगण्य होते थे। वे विभिन्न ग्रन्थों से कुछ अंश चुराकर कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनवा जोड़ा' वाली उक्ति को सार्थक करते थे। इस स्तेयकला में वे इनते प्रवीण होते थे, कि बड़े-बड़े दिग्गज पण्डित भी उनकी इस चोरी को पकड़ नहीं पाते थे। हजारों वर्षों का इतिहास में श्री मुख्तार ही अनुपम विलक्षणता के धनी ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने भट्टारकों की चोरी को पकड़ा और उसे परीक्षार्थ जैन समाज के समक्ष प्रस्तुत किया। फलतः ग्रन्थ परीक्षा के रूप में शोध-खोज
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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