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________________ 80 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements नारियाँ अश्लील गीत गाने लगी। उन्होंने तत्काल गाने वाली नारियों को रोक दिया और कुछ ही क्षणों में एक सुन्दर बधाई लिख डाली 'गावो री बधाई सखि मंगलकारी' यह रचना उनका अहंभाव नहीं अपितु पीड़ा से कराहती हुई भारतीय संस्कृति की मुक्ति का भी संकेत था। क्योंकि भारतीय संस्कृति पावन तोया गंगा है। इसमें दो नदियाँ आकर मिली हैं, श्रमण और वैदिक। 'संस्कारः इति संस्कृति'। समपूर्वक 'कृ' में भाव अर्थ में "क्तिन्' प्रत्यय करने पर संस्कृति शब्द व्युत्पन्न होता है जिसका अर्थ है, संस्करण, परिमार्जन, शोधन आदि। आचार्य हरिभद्रसूरि ने श्रमण की व्याख्या इस प्रकार की है। "श्राम्यन्तीति श्रमणः तपस्यन्ते इत्यर्थ । अर्थात जो कष्ट सहता है, तप करता है, अपने पुरुषार्थ पर विश्वास करता है वही श्रमण है। श्रमण पुरुषार्थ का और जिन से बना जैन उस शब्द के प्रति फल की व्याख्या, व्यापकता, विशालता, सार्वभौमिकता आदि अर्थों में करता है।" इस प्रकार यह संस्कृति समस्त पुरुषार्थी समाज की संस्कृति है, ये न यूरोपियन है, न एशियन, न भारतीय अपितु प्राणी मात्र का अन्तस्तल है। पं. जुगलकिशोर जी ने अपनी इसी सांस्कृतिक विरासत को अपनी सुरुचिपूर्ण प्रवृत्तियों के कारण अक्षुण्ण रखा। उन्होंने कहा हमारे संस्कार पर्वो में गाये जाने वाले गीत हमारे साहित्य एवं संस्कृति की अक्षय निधि हैं, इन्हें हमें संरक्षित बनाकर रखना है। लेकिन आज हम अपनी अविद्या के कारण इन पुनीत पर्वो की रक्षा नहीं कर पाते और इसी प्रसंग से उनकी कवित्व शक्ति का सोया हुआ देवता जाग्रत हो उठा। उनकी सहधर्मिणी ही उनके लिये कविता की पहली पंक्ति सिद्ध हुई। ऐसा लगा मानों हीरे के ऊपर शान रख दी गयी हो। व्यवसाय-के रूप में जब निर्वाह हेतु आपने मुख्तारी का प्रशिक्षण प्राप्त किया मुख्तारी का पेशा ग्रहण किया। उन दिनों यह पेशा अत्यधिक आकर्षण का केन्द्र था, इसमें पर्याप्त रुपयों की आमदनी होती थी। वकीलों
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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