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________________ 76 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements सन्दर्भग्रन्थ 1 पुस्तकालय और समाज ले डॉ. पांडेय एस के शर्मा ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली पृ. 17 2. पुस्तकालय और समाज। पृ. 23 3 काव्य प्रकाश, मम्मट 4. श्री पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार 'युगवीर' कृतित्व और व्यक्तित्व । पृ. 27 6 वही । पृ 26 लोभश्चेदगुणेन किं पिशुनता यद्यस्ति किं पातकै : सत्यं चेत्तपसा च किं शुचिमनो यद्यस्तितीर्थेन किम् । सौजन्यं यदि किं गुणैः स्वमहिमा यद्यस्ति किं मंडनैः सद्विधा यदि किं धनैरपयशो यद्यस्ति किं मृत्युना ॥ भवत्यरूपोऽपि हि दर्शनीयः स्वलंकृतः श्रेष्ठतमैर्गुणैः स्वैः दोषैः परीतो मलिनीकरैस्तु सुदर्शनीयोऽपि विरूप एव ॥ अपने श्रेष्ठ गुणों से अलंकृत होकर कुरूप मनुष्य भी दर्शनीय हो जाता है, किन्तु गंदे दोषों से व्याप्त होकर रूपवान भी कुरूप हो जाता है। - अश्वघोष (सौन्दरनन्द, १८ । ३४) न च निकषपाषाणशकलं विना निजगुणमाविष्करोति काञ्चनी रेखा । सुवर्ण की रेखा भी कसौटी के पत्थर के टुकड़े बिना अपने प्रकट नहीं कर पाती। को 'गुण -कर्णपूर (आनन्दवृन्दावन चम्पू, ८।१५)
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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