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________________ 57 पशुमलकिशोर मुखार "पुगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषय पर लिखी उनकी काव्य एवं गध रचनाओं से उन्होंने अनेक साधर्मियों का विरोध मोल ले लिया। विवाह समुद्देश्य','विवाहक्षेत्र प्रकाश','म्लेच्छ कन्याओं से विवाह', 'जाति भेद पर अमितगति' नामक उनके निबन्धों ने सम्पूर्ण जैन समाज को आंदोलित कर दिया था। उन्होंने डंके की चोट पर लिखा था कि कुल-गोत्र-जाति आदि का बन्धन विवाह में बाधक नहीं है। इसी प्रकार मुनियों और त्यागियों की शास्त्र प्रतिकूल शिथिलाचारी प्रवृत्तियों की खुली आलोचना की और दस्सा-बीसा, शूद्र, म्लेच्छ, उच्च-नीच आदि के सम्बन्ध में फैली भ्रान्त धारणाओं की तर्क परक और शास्त्रोक्त प्रमाण सहित समीक्षा की। इसके लिए उन्हें जाति बहिष्कार की धमकी भी मिली। चूंकि उनके ये विचार तत्कालीन समाज की भ्रान्तधारणाओं के अनुकूल नहीं थे। अतः उनका विरोध हुआ, किन्तु आज शनैः शनैः समाज इसी लीक पर आता जा रहा है। अन्तर्जातीय विवाह एक वास्तविकता एवं समयानुकूल समस्या का निदान बनता जा रहा है। अस्पृश्यता की गंभीर समस्या नहीं है, स्वतंत्र और सम्यक् आलोचना से जाति बहिष्कार जैसी प्रतिक्रिया नहीं होती। समाज सुधार सम्बन्धी उनके विचार आज भी जीवन्त हैं। उनकी सीख और उपदेश आज अनुकरणीय और ग्रहणीय बनते जा रहे हैं। अतः हम निर्विवाद रूप से कह सकते हैं कि वे अपने युग के शिशु थे और उनकी रचनाएँ निःसंदेह रूप से कालजयी हैं और रहेंगी। भवति सुभगत्वमधिकं विस्तारितपरगुणस्य सुजनस्य। दूसरों के गुण को प्रख्यात करने वाले सज्जन पुरुष का सौन्दर्य और भी अधिक हो जाता है। - गुणांल्लोकोत्तराखण्वन्नस्यानुभवगोचरान्। भविता पूर्वभूपालकृत्ये सप्रत्ययो जनः। अनुभव-गोचर उसके अलौकिक गुणों को सुनकर लोगों को पहले के उत्तम राजाओं के कार्य में विश्वास होगा। -कल्हण (राजतरंगिणी, ८1१५५७)
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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