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________________ कुटुम्बमें विवाह । ६५ भी अगवाल अगवालों में ही विवाह करके अपने एकहो वंशमें विवाहकी प्रथाको चरितार्थ कर रहे है और राजा ऋगसेनकी दृष्टिसे साभगवाल उन्हीं के एक गोत्री हैं। समालांच कजीने विरोधके लिये जिन प्रमाणों की उपस्थित किया था उनमें से एकभी विरोधक लिये स्थिर नहीं रह सका; प्रगत इसके सभी लेखकके कशन की अनुकूलतामें परिमात होगये और इस बातको जतला गये कि समारवाचकजी सत्य पर पर्दा डालनेकी धनमें समालोचना की हदसे कितने बाहर निकल गये - समालोचक के कर्तव्यसे कितने गिर गये- उन्होंने सत्यको छिपाने तथा असलियत पर पर्दा डालने की कितनी कोशिश की, कितना कोलाहल मचाया, कितना श्राडम्बर रचा और कितना पाखंड फैलाया परन्तु फिरभी चे उममें सफल नहीं हो सके ! सायही, उनके शास्त्रज्ञान और दंभविधानको भी सारी कलई खुलगई !! अस्तु । यह तो हुई उदाहरण के प्रथम अंश—'देवकीसे विवाह'के आशंपों की बात, अक्ष उदाहरणके दूसरे अंश- जरासे विवाह' को लीजिये। म्लेच्छों से विवाह । लेखक ने लिखा था कि--" जरा किसी म्लेच्छराजाकी कन्या थी जिसने गंगा तट पर वसुदेवजी को परिभ्रमण करते हुर दखकर उनके साथ अपनो इस कन्या का पाणिग्रहण कर दिया था। पं० दौलतरामजी ने, अपने हरिवंशपुराणमें, इस राजा को 'म्लेच्छरखण्ड का राजा' बतलाया है और पं० गजाघरलालजी उसे ' भीलोका राजा' सत्रित करते हैं। वह राजा म्लेच्छखण्डका राजा हो पा पार्यस्वराडोद्भव म्लेच्छराजा, और चाहे उसे भीलों का राजा कहिये, परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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