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________________ विवाह-क्षेत्र प्रकाश । लिये तय्यार हो गये हैं कि जिनसेनने हरिवंशपुराणमें देवकी को कंसकी वहन क्यों कर लिखा है ! यह कितने साहसकी बात है ! आपने यह नहीं सोचा कि जिनसेनाचार्य तो स्वयं देवकी को राजा उग्रसेनके भाई की पत्री बतला रहे हैं और देवसेन उग्रसेन का सगा भाई था, फिर वह कंसके मामाकी लड़की कैसे होसकती है ? वह तो कंपके सगे च चाकी लड़की हुई। परन्तु आप तो सत्य पर पर्दा डालने की धनमें मस्त थे श्रापको इतनी समझ बूझसे क्या काम ? __ यहाँ पर इतना और भी बतला देना उचित मालम होता है कि पहले जमाने में मामाकी लडकीसे विवाह करने का प्राम रिवाज था और इसलिये मामाकी लड़कीको उस वक्त कोई बहन नहीं कहता था। और न शास्त्रों में बहन रूप से उसका उल्लेख पाया जाता है। समालोचकजी लिखनेको तो लिखगये कि देवको कंसके मामाको लड़की थी और इसलिये कंस उसे बहन कहता था परन्तु पीछे से यह बात उन्हें भी खटकी जरूर है और इसलिये श्राप समालोचनाके पष्ट ११ पर लिखते हैं:" देवकी कंसके मामाकी बेटी थी श्राजकल मामाकी बेटीको भी बहिन मानते हैं। शायद इस पर बाब साहब यह कह सकते है पहिले मामाको बेदी बहिन नहीं मानी जाती थी क्योंकि लोग मामा की बेटीके साथ विवाह करतथे और दक्षिणदेशमें अबभा करते है, परन्तु इस सन्देह को श्राराधनाकथाकोशक श्लाक अच्छी तरह दूर कर देते हैं साथमें बाब साहबके खास गांव देवबंदमें जो श्राराधनाकथाकोश छपा है। उससे भी यह संदेह साफ तौर से काफूर होजाता है" इससे ज़ाहिर है कि समालोचकजी ने देवकीको यदुवंशसे पथक करने और उसे भोजकवृष्टिकी पौत्री न माननेका अपना
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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