SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवाह क्षेत्र प्रकाश | गम्य निदानतः " यह तीसरी पंक्तिभी उधृत है और प्रत्थके प्रारंभ अपने पुराण कथनको प्रधानतः गुणभद्र के पुराण (उत्तर पुरोग) के श्राश्रितसूचित किया है । यथा:-- I ८२ यत्पुराणं पुरोक्तं गुणभद्रा दिसूरिभिः । तद्वये बोधोऽहं किमाश्चर्यमतः परं ||२८|| पाण्डवपुराण में गुणभद्र की स्तुति के बाद स्पष्ट लिखा ही है कि उनके पुराणार्थका अवलोकन करके यह पुराण रचा जाता है । यथा : गुणभद्रभदंतोऽत्र भगवान् भातु भूतले । पुराण प्रकाशार्थं येन सूर्यातिं लघु ॥ १६ ॥ तत्पुराणार्थमालोक्य धृत्वा सारस्वतं श्रुतम् । । 1 मासे पाण्डवानां हि पुराणं भारतं ब्रुवे || २० || जिनदास ब्रह्मचारीका हरिवशपुराण प्रायः जिनसेनाचार्य के हरिवंशपुराणका सामने रखकर लिखा गया है और उसमें जिनसेनके वाक्योंका बहुत कुछ शब्दानुसरण पायाजाता है जिनदासने स्वयं लिखाभी है कि गौतम गणधरादिके बाद हरि- वंशकं चरित्रको जिनसेनाचार्यने पृथ्वी पर प्रसिद्ध किया है । और उन्हीं के वाक्यों परसे ग्रह चरित्र अपने तथा दूसरोंके सुख- बोधार्थ यहाँ उद्धृत किया गया है । यथा :-- ततः क्रमाच्छीजियसेननाम्नाचार्य जैनागमको विदेन । सत्काव्य केली सदनेन पृथ्यांनीतंप्रसिद्धिं चरितं हरेश्व ॥ ३५ ॥ श्रीनेमिनाथस्य चरित्रमतदाननं (१) नीत्वा जिनसेनसरेः । समुद्धृतं स्वान्यसुखप्रबोध हे तोश्चिरं नन्दतु भूमिपीठे ॥ ४१ ॥” - ४०वाँ सर्ग |
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy