SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुटुम्ब विवाह । 98 पं० गजोधरलालजी ने भी इस प्रसंग पर, अपने अनुवाद में, 'देवसेन' का ही नाम दिया है जिसका पीछे उल्लेख किया जाचका है और उनकी, पं० दौलतरामजी वालो इन पंक्तियोंके श्राशयसे मिलती जलनी, पंक्तियां भी ऊपर उधत की जाचुकी हैं। हो सकता है कि उनका यह नामोल्लेख पं० दौलतरामजी के कथन का अनकरण मात्र हो, क्योंकि तीन साल बाद के अपने विचार लेख में, जिसका एक अंश · पावती पुरवाल ' से ऊपर उद्धृत किया जा चुका है, उन्होंने स्वयं देवकी को राजा उग्रसेन की पुत्री स्वीकार किया है । परन्तु कुछ भी हो, पं० दौलतरामजी ने उग्रसेन के उस भाई का नाम जो देवसेन सचित किया है वह ठोक जान पड़ता है और उसका समर्थन उत्तरपुराण के निम्न वाक्यों से होता है: " अथ स्वपुरमानीय वसुदेवमहीपतिम् । देवसेनसुतामस्मै देवकीमनुजां निजाम् ॥३६६॥" विभूतिमद्वितीय वं काले कंसस्य गच्छति । अन्येधुरतिमुक्ताख्यमुनिर्भितार्थमागमत् ॥३७०॥" राजगहें समीक्ष्यैनं हासाज्जीवधशा मुदा । देवकीपुष्पजानन्दवस्त्रमेतत्तवानुजा ॥ ३७१ ॥" स्वस्याश्चेष्टितमेतेन प्रकाशयति ते मुने । इत्यवोचत्तदाकर्ण्य सकोपः सोऽपि गुप्तिभित्॥३७२॥" --७०वाँ पर्व। इन वाक्यों द्वारा यह बतलाया गया है कि-'कंसने नप बसदेवको अपने नगरमें लाकर उन्हें देवसेनकी पुत्री अपनी छोटी बहन 'देवकी' प्रदानकी । विवाहदी )। इसके याद कुछ काल पीतने पर एक दिन 'अतिमुक्त' नामके मुनि भिक्षाके लिये
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy