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________________ विवाह क्षेत्र- प्रकाश । का रजस्वल वस्त्र मुनि के समीप डालकर हँसी दिल्लगी उड़ाते हुए उनसे कहा 'देखो ! यह तुम्हारी बहन देवकी का आनन्द वस्त्र है ' । ७४ इस पर संसारकी स्थिर्तिके जानने वाले मुनिराजने अपनी वचन- गुप्तिको भेदकर खेद प्रकट करते हुए, कहा 'अरी क्रोडनशीले ! तू शोकके स्थान में क्या आनंद मना रही है, इस देवकी के गर्भ से एक ऐसा पुत्र उत्पन्न होनेवाला है जो तेरे पति और पिता दोनोंके लिये काल होगा, इसे भवितव्यता समझना ।' मुनिके इस कथनले जीवद्यशाको बड़ा भय मालूम हुआ और उसने अश्रुभरे लोचनसे जाकर वह सब हाल अपने पति से निवेदन किया । कंसभी मुनिभाषण को सुनकर डर गया और उसने शीघ्रही वसुदेव के पास जाकर यह वर माँगा कि 'प्रसूति के समय देवकी मेरे घरपर रहे' । वसुदेवको इस सब वृत्तान्त की कोई खबर नहीं थी और इसलिये उन्होंने कंसकी वरयाचना गुप्त रहस्य न समझ कर वह वर उसे दे दिया । सो ठीक है 'सहोदरके घर बहनके किसी नाशकी कोई आशंका भी नहीं की जाती ' -- कंस देवकीका सोदर (सगाभाई ) था, उसके घरपर देवकीके किसी ग्रहितकी आशंका के लिये वसुदेव के पास कोई कारण नहीं था, जिससे वे किसी प्रकार उसकी प्रार्थनाको अस्वीकार करनेके लिये वाध्य होसकते, और इसलिये उन्होंने खुशी से कंसकी प्रार्थनाको स्वीकार करके उसे वचन दे दिया । यह सब कथन जिनसेनाचार्य के हरिवंशपुराण से लिया गया है । इस प्रकरणके कुछ प्रयोजनीय पद्य पं० दौलतरामजी की भाषा टीका सहित इस प्रकार हैं : “वसुदेवोपकारेण हृतः प्रत्युपकारधीः । न वेत्ति किं करोमीति किंकरत्वमुपागतः ॥ २८ ॥
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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