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________________ कुटुम्बमें विवाह । प्रमाणों में चौथे नम्बर का प्रमाण इस प्रकार थाः__“उक्त (जिनसेनाचार्यकृत ) हरिवंशपुगण में यह भी लिखा है कि घसुदेव जी का विवाह देवकी से हुश्रा । देवकी गजा उग्रसेन की लड़की और महाराज सुधीर को पड़पोती (प्रपौत्री) थी और वसुदेव जी महाराजा सर के पोते थे। सर और सुवीर दानों सगे भाई थे-अर्थात् श्रीनेमिनाथ के चचा वसुदेव जी ने अपने चचाज़ाद भाई की लड़की से विवाह किया। इससे प्रकट है कि उस समय विवाह में गोत्र का विचार वा बचाव नहीं किया जाता था। नहीं मालम परवारों में आजकल पाठ पाठ वा चोर चार साके (शाखाएँ) किस प्राधार पर मिलाई जाती है।" इस लेख के उत्तरमें पंडितजीने दूसरालेख, वही 'शुभचिन्ह' शीर्षक डालकर, १६ जन सन १६१३ के जैनगजट में प्रकाशित कराया, उसमें इस प्रमाण के किसीभी अंशपरकोई आपत्तिनहीं कीगई और न दो श्लोकोंके अर्थपर *श्रापत्तिकरने के सिवाय, दूसरेही किसी प्रमाणको प्रमाण ठहराया गया। जैनमित्रके सम्पादक ब्रशीतलप्रसाद जीनेभी उक्त प्रमाण पर कोई आपत्ति महीकी, हालाँकि उन्होंने लेखपर दो सं० नोट भी लगाये थे। (३) इसके छह वर्षबाद, शिक्षाप्रदशास्त्रीय उदाहरण' नं०२ के नामसे वसुदेवजीके उदाहरणका यह प्रकृत लेख लिखा गया और अप्रेल सन १६१६ के 'सत्योदय' में प्रकाशित हुआ । उस वक्त इस लेखपर 'पद्मावतोपरवाल' के सम्पादक पं० गजाधर. लालजी न्यायतीर्थ ने अपना विस्तृत विचार प्रकट किया था और उसमें इस बातको स्वीकार कियाथा कि देषकी उग्रसेनकी *अर्था-विषयक इस आपत्तिका उत्तर 'अर्थ-सर्थन' नामक लेखद्वारा दिया गया जो १७ सितम्बर सन १६३ के जैनमित्र में प्रकाशित भा था।
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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