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________________ विवाह-क्षेत्र प्रकाश। ~~~~~~~~~~~ समालोचकजीके इस लिखनेका क्यामूल्य है,और इसके द्वारा लेखकपर उन्होंने कितना झूठा तथा नीच आक्षेप किया है, इसे पाठक अब स्वयं समझ सकते हैं। समझमें नहीं प्राता कि एक वेश्यासे विवाह करने या उसे स्त्री बना लेनेकी पुरानी बातको मान लेने में उन्ह क्यों संकोच हश्रा और उसपर क्यों इतना पाखंड रचा गया?वेश्याप्रोसे विवाह करलेनेकेतो और भी कितने ही उदाहरण जैनशास्त्रों में पाये जाते हैं, जिनमेंसे 'कामपताका' वेश्या का उदाहरण ऊपर दिया ही जा चुका है। और *पण्यानव' कथाकोशमें लिखा है कि 'पंचसगंधिनी' वेश्याकी किन्नरी' और 'मनोहरी' नामकी दो पुत्रियाँ थी, जिनके साथ अयंधरके पुत्र प्रतापंधर अपरनाम 'नागकुमार' ने, पिताकी श्राक्षासे, विवाह किया था+ ये नागकुमार जिनपूजन किया करतेथे, उन्होंने अन्तको जिनदीक्षा ली और ये केवलज्ञानी होकर मोक्ष पधारे। उनकी इस कृतिसे-अर्थात, साक्षात *यह पुण्यास्रव कथाकोश केशवनन्दि मुनिके शिष्य रामचन्द्र मुमुलका बनाया हुश्रा है। इसका भाषानुवाद पं० नाथूरामजी प्रेमाने किया है और वह सन१६०७ में प्रकाशितभी होचुका है। + यथा-"एकदा राजास्थानं पंचसगंधिनीनामवेश्या समागत्य भूपं विज्ञापयतिस्म देव ! मे सुते द्वे किन्नरी ममोहरी च वीणावाधमदगर्विते नागकुमारस्यादेशं देहि तयोवाच परीक्षितुं .......तेचात्यासक्ते पितृवचनेन परिणीतवान प्रतापंधरः सुखमास ।"-इति पुण्यात्रवः । x"...प्रतापंधरोमुनिश्चतुःषष्ठिवर्षाणि तपश्चकार कैलासे केवली जझे।"-इति पुण्यात्रवः । अर्थात-प्रतापंधर (नागकुमार ) ने मुनि होकर ६४ वर्ष तप किया और फिर कैलासपर्वत पर केवल ज्ञानको प्राप्त किया।
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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