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________________ द्वि० लेखका उद्देश्य और उसका स्पष्टीकरण । ३३ प्रियतमा मदनवेगाके साथ चलदिये ॥२॥ सिद्ध कूटपर जाकर चित्र विचित्र वेषोंके धारण करने वाले विद्याभरीने सानंद भगवानकी पूजा की चैत्यालय को नमस्कार किया एवं अपने अपने स्तंभोंका सहारा ले जुदे २ स्थानों पर बैठ गये ॥ ३ ॥ कुमार के श्वसुर विद्युद्वगने भी अपनी जातिके गौरिक निकाय के विद्याधरोंके साथभले प्रकार भगवागको पूजाकी और अपनी गौरी-विद्याभों के स्तंभका सहारा ले बैठगये ॥४॥ कुमारको विद्याधरोकी जातिके जानने की उत्कंठा हुई इसलिये उन्होने उनके विषयमें प्रियतमा मदनवेगासे पछा और मदनवगा यथायोग्य विद्याधरोकी जातियोंका इसप्रकार वर्णन करने लगी." "प्रभो ! ये जितने विद्याधर है वे सब आर्य जातिके विद्याधर है अब मैं मातंग [अनार्य ] जातिके विद्याधरोंको बतलाती हूँ आप ध्यान पूर्वक सुने-" ___ "नील मेघके समान श्याम नीली माला धारण कियेमातंग स्तंभके सहारे बैठे हुये ये मातंग जातिके विद्याधर है ॥१४-१५॥ मुर्दोको हड्डियों के भषणोंसे भुषित भस्म (राख) की रणुप्रोसे भद मैले और श्मशान [ स्तंभ ] के सहारे बैठे हुये ये श्मशान नतिके विद्याधर है ॥ १६ ॥ येडूर्यमणि के समान नीले नीले पत्रों को धारण किये पांडुर स्तंभक सहारे बैठे हुये ये पांडक जातिके विद्याधर है ॥ १७ ॥ काले काले भृगचर्मों को आढे काले चमड़े के वस्त्र और मालाओं को धारे कालस्तंभका श्राश्रय ले बैठे हुये ये कालश्वपाकी जातिके विद्याधर हैं ॥१८॥ पीले वर्णके केशोसे भूषित, तप्त सुवर्ण के भूषणोंक धारक श्वपाक विद्याओं के स्तंभके सहारे बैठने वाले वेश्वपाक जातिके विद्याधर है ॥ १६॥ वृक्षोंके पत्तोंके समान हरे वस्त्रोंके धारण करनेवाले, भाँति भाँतिके मुकुट और मालाओंके धारक, पर्वत
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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