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________________ द्वि० लेखका उद्देश्य और उसका स्पष्टीकरण । २५ यद्यपि किसी घटना का केवल उल्लेख करने से ही यह लाजिमी नहीं श्राता कि उसका लेखक वैसी प्रवृत्ति चलाना चाहता है फिरभी उस उल्लेख मात्र से ही यदि वैसा प्रवृत्ति की इच्छाका होना लाज़िमी मान लिया जाय तो समालोचकजी को कहना होगा कि श्री जिनसेनाचार्यने एक मनुष्य के जीतेजी उसकी स्त्रीको घरमें डाल लेने की, दूसरेकी कन्याको हरलाने की और वेश्या से विवाह कर लेने की भी प्रवृत्तिको चलाना चाहा है, क्योंकि उन्होंने अपने हरिवंशपुराण में ऐसा उल्लेख किया है कि राजा सुमुखने वीरक सेठके जीतेजी उसकी स्त्री 'वनमाला' को अपने घर में डाल लिया था, कृष्णजी रुक्मिणीको हर कर लाये थे, और अमोघदर्शन राजाके पुत्र चारुचंद्र ने 'काम पताका' नामकी वेश्या के साथ अपना विवाह किया था । यदि सचमुच ही इन घटनाओं के उल्लेख मात्र से श्रीजिनसेनाचार्य, समालोचकजीकी समझ के अनुसार, वैसी इच्छा के अपराधी ठहरते हैं. तो लेखक भी ज़रूर अपराधी है और उसे अपने उस अपके लिये ज़राभी चिन्ता तथा पश्चात्ताप करने की ज़रूरत नहीं है । और यदि समालोचकजी जिनसेनाचार्य पर अथवा उन्हीं जैसे उल्लेख करने वाले और भी कितनेही श्राचार्यों तथा विद्वानोंपर वैसी प्रवृत्ति चलाने का आरोप लगानेके लिये तरयार नहीं हैं - उसे अनुचित समझते हैं - तो लेखक पर उनका वैसा आरोप लगाना किसी तरहभी न्याय संगत नहीं होलकता । वास्तव में यह लेख नतो कैसे किस प्राशय या उद्देश्य से लिखा गया और न उसके किसी शब्द ही वैसा आशय या उद्देश्य व्यक्त होता है जेलाकि समालोचकजी ने प्रकट किया | लेखका स्पष्ट उद्देश्य उसके शिक्षण से बहुत थोड़ेसे ऊँचे तुले शब्दोद्वारा सूचित किया गया है, और उन परले हर एक विचारशील यह नतीज कता है कि वह जाति-विरा म
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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