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________________ विवाह-क्षेत्र प्रकाश। सक वास्तविक, कृत्रिम अथवा काल्पनिक हैं और उनमेंसे किस किसमें, किस हद तक, क्या संधार बन सकता है-कीर अपने इस अनुभषके बक्से वे मिथ्या विभीषिकायोको दु. ५.ने. विवाह-क्षेत्रकी त्रुटियोको सुधारने, रीति-रिवाजोल फेरफार करने और इस तरह पर विवाह-क्षेत्रको प्रशस्त तथा विस्तीर्ण बनाकर उसके द्वारा अपनी और अपने धर्म तथा समाजकी रक्षाका समचित प्रबन्ध करनेके लिये बहुत कन् समर्थ हो सकेंगे। इसी सदुद्देश्यको लेकर यह इतना परिश्रम किया गया है। ___ यहाँ पर पाठकोको यह जानकर बड़ा कौतुक होगा कि इसी मिथ्या, निःसार, बेतुकी और बेहदी समालोचनाके भरोसे पर पं० महबूबलिहजो मालिक फर्म 'हुकमचंद जगाधरमल' जैन सर्राफ, चांदनी चौक देहली, ने 'शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदा. हरण' के लेखक, प्रकाशक और प्रकाशकके सहायक ला० एमालालजीको शास्त्रार्थका चैलेंज दिया था, जो समालोचना-पुस्तक के अन्तिम टाइटिल पेज पर अंकित है और जिसमें इन लोगोंसे कहा गया है कि"यदि उन्हें अपनी लिखो प प्रकाशित की हुई उपयुक्त पस्तक की सत्यता पर कुछ भी विश्वास है तो ये अपने सपक्ष के लोगोंको साथ लेकर खुले मैदान में शास्त्रार्थ करलें जिससे उनके हृदयमें लगहुए मिश्या और पतित भाव सदाके लिये छूट जाँय।" मुझे इस चैलेंजको देखकर बड़ी सी आई । सापही, चैलेंजदाताके शास्त्रज्ञान और उनके इस छछोरपन पर गोद मी हुमा । मालम होता है पंडितजीने इस विषय पर कोई गहरा विचार नहीं किया, बेसभोले भाले समान भावमो. सपने
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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