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________________ १५० विवाह-क्षेत्र-प्रकाश। खंडेलवाल तथा ओसवाल जातियों के गोत्रोंको उदाहरणके तौर पर लिया जाता है। इस दिग्दर्शन परसे पाठकोको यह समझने में श्रासानी होगी और वे इस बात का अच्छा निर्धार कर सकेंगे कि आजकल इन गोत्रोको जो महत्व दिया जाता है अथवा विवाह-शादीके अवसरों पर इनका जो भागह किया जाता है वह कहाँ तक उचित तथा मान्य किये जानेके योग्य है: (१) अगवाल जातिके इतिहाससे मालूम होता है कि अगवालवंशके आदि पुरुष राजा अगसेन थे । वे जिस गोत्रके व्यक्ति थे वही एक गोत्र, अाजकल की दृष्टि में, उनकी संतति का-संम्पूर्ण अगवालोका-होना चाहिये । परन्तु ऐसा नहीं है। अगवाल जातिमें श्राज १८ गोत्र प्रचलित है और ये गोत्र राजा अगसेनके अठारह पुत्री द्वारा धारण किये हुये गोत्र हैं, जिनकी कल्पना उन्होंने अपनी संततिके विवाहसंकटको दूर करने के लिये की थी। इनमें से गर्ग श्रादि अधिकांश गांवीका नामकरण तो उन गर्गादि ऋषियोंके नामों पर हुआ है जो पुष्पदेवादि राजकुमारोंके अलग अलग विद्यागुरु थे और वाकीके वृन्दल, जैत्रल (जिंदल) आदि कुछ गोत्र वृन्ददेवादि राजकुमारों के नामोपरसे ही निर्धारित किये गये अथवा प्रचलित हुए जाम पड़ते हैं। ऐसी हालतमें यह स्पष्ट है कि राजा अगसेनका गोत्र उनके साथही समाप्त हो गया था-वह उनकी संततिमें प्रचलित नहीं रहा-और १८ नये गोत्रोंकी सृष्टि भी होसकी। साथ ही, यह बतलाने की कोई जरूरत नहीं रहती कि पहले जमाने में पिताके गोत्रको छोड़कर नये गोत्र भी धारण किये जा सकते थे और इस नई गोत्र-कल्पनाके अनुसार अपने विवाह-क्षेत्रको विस्तीर्ण बनाया सकता था। यदि अग्रवालोंकी इस पिछली गोत्र-कल्पनाको हटा दिया जाय तो, राजा अगसेनकी शष्टि से. सब अगवाल एक गोत्री हैं और वे परस्पर-अगूवालोंमेंही
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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