SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मलेच्छोसे विवाह । १२१ इस सब कथनसे साफ जाहिर होता है कि-जिस जराका घसुदेव के साथ विवाह हुश्रा, जिसके पुत्र जरत्कुमारने राजपाट छोड़कर जैनमनि दीक्षा तक धारणकी और जिसकी संततिमें होने वाले जितशत्रु राजासे भगवान महावीरकी वश्रा व्याही गई वह एक म्लेच्छ राजांकी कन्या थी, भील भी म्लच्छोकी एक जाति होनेसे वह भील कन्या भी हो सकती है परन्तु वह म्लेच्छ खंडके किसी म्लेच्छ राजाकी कन्या नहीं थी किन्तु आर्यखगडोद्भयम्लेच्छ राजाकी कन्या थी जा चम्पापुरी कपासक इलाके में रहता था । म्लन्छुखंडोमै श्रायोका उद्भव नहीं । म्लेच्छोका सर्व सामान्याचार वही हिंसा करना और मांस भक्षणादिक है । मलेल्छ खडाके म्लेच्छभी उस प्राचारसे खाली नहीं है, वे खास तौरपर धर्म कर्मसे वहित है और उनका क्षेत्र धर्म कर्मके अयोग्य माना गया है वहाँ सजातिका उत्पाद भी प्रायः नहीं बनता।ग्लेछीम नाच गोत्रादिकका उदयभी बतलाया गया है और इससे यह नहीं कहा जा सकताकि वे उच्चजातिके होत है । भरत चक्रवतीने ( तदनसार और भी चक्रवतिया ने) म्लेच्छ राजादिका की बहुतसी कन्याओं से विवाह किया है, वे हीन कुल जातिकी कन्याश्री से विवाह कर लेना अनुचित नहीं समझत थे, उन्होंने ग्ले छोकी कुल सृद्धि करने और जिनके कुलमें किसी वजहसे कोई दोष लग गया हो उन्हें भी शुद्ध कर लेने का विधान किया है । उस वक्त न मालूम कितने ग्लेच्छ शुद्ध होकर आर्यजनताम परिणत हुए । इतिहास से कितनेही म्लेच्छ राजादिकोंका आर्य जनतामे शामिल होने का पता चलता है। पहले जमाने में दुष्कुलोंसे भी उत्तम कन्याएँ ले ली जाती थी, राजा श्रोणिकके पिताने भील कन्यासे विवाह किया और सम्राट चंद्रगुप्तने एक म्लेच्छराजाकी कंन्यासे शादी की । ऐसी हालतमें समालोचकजीने उदाहरणके इस अंश पर जो कुछ भी
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy