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________________ १०२ विवाह क्षेत्रप्रकाश। श्राप यहाँ तक कल्पना करने के लिये मजबर हुए हैं कि यदि वह कन्या ( जरा) भीलोने ही वसुदेव को दी हो तो वह जरूर किसी दूसरी जातिके राजाकी लड़की होगी और भील उसे छीन लाये होंगे । यथा :--. "... भील लोग जंगलों में रहने वाले जिनके विषयमें शास्त्रों में लिखाहै कि वे बड़े काले,बदसूरत डरावने होते हैं। तो वसदेवजी ऐसे पराक्रमी और सन्दर कामदेवके समान जिनके रूपके सामने देवाङ्गनायें भी लजित होजावे, ऐसी राजाओंकी अनेक रूपवती और गणवती कन्याओं के साथ विवाह किया। उन को क्या ज़रूरत थी कि ऐसे बदसरत भीलकी लड़कोके साथ शादी करते। हाँ यह ज़रूर होसकता है कि भील किसी राजाकी लड़कीको छीन लाये हों और उसे सुन्दर खूबसूरत समझ कर वसुदेवको देदी हो। इससे सिद्ध है कि वह भीलकी कन्या तो थी नहीं"। परन्तु सभी भील बड़े काले, बदसूरत और डरावने होते हैं, यह कौनसे शास्त्र में लिखा है और कहाँसे आपने यह नियम निर्धारित किया है कि भोलौकी सभी कन्याएँ काली, बदसूरत तथा डरावनी ही होनी हैं ? क्या रूप और कुनके साथ कोई अविनाभाव सम्बंध है ? हम तो यह देखते हैं कि अच्छे अच्छे उञ्चकुलों में बदसूरत भी पैदा होते हैं और नीचातिनीच कुलों में खबसूरत बच्चे भी जन्म लेने हैं । कुलका समग, दुर्भग और सौभाग्यके साथ कोई नियम नहीं है । इसी बातको श्रीजिनसेनाचार्यने वसुदेवके मुखसे, रोहिणीके स्वयंवरके अवसर पर कहलायो है। यथा : कश्चिन्महाकुलीनोऽपि दुर्भगः सुभगोऽपरः ।
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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