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________________ ६ म्लेच्छोसे विवाह। विशिष्ट राजा'का है, यह बात उनके इसी प्रन्थके दूसरे उल्लेखों से भी पाई जाती है। यथा :म्लेच्छराजसहस्राणि वीक्ष्य पूर्ववरूथिनीम् । टुभितान्यभिगम्याशु योधयामासरश्रमात् ।। ३०॥ ततः क्रुद्धो युधि म्लेच्छरयोध्यो दंडनायकः । युवा निर्धय तानाशु दधे नामार्थसंगतम् ॥ ३१ ॥ भयान्म्लेच्छास्ततो याताः शरणं कुलदेवताः। घोरान्मेघमुखानागान्दर्भशय्याधिशायिनः ॥ ३२ ॥ * * * ततो मेघमुखैम्लेंच्छाः प्रोक्ताः संहतवृष्टिभिः । चक्रिणां शरणं जग्मुरादाय वरकन्यकाः ॥ ३८ ॥ __-११वाँ सर्ग। यहाँ, उत्तर भारतखण्ड के म्लेच्छोंके साथ भरत चक्रवर्ती के सेनापति जयकुमारके युद्धका वर्णन करते हुए, पहले पद्यमें जिन सहस्रों म्लेच्छ राजाओं का “ म्लेच्छराजसहस्राणि" पदके द्वारा उल्लेख किया है उन्हें ही अगले पोंमें "म्लेच्छ." और “ म्लेच्छाः” पदों के द्वारा स्पष्ट रूप से ‘म्लेच्छ' सूचित किया है। और इससे साफ जाहिर है कि 'ग्लेच्छ राजा' का अर्थ म्लेच्छ जानिके राजासे है। और इस लिये जराका पिता म्लेच्छ था। पं० दौलतराम जी ने इस राजाको जोम्लेच्छखण्डका राजा बतलाया है उसका अभिप्राय 'म्लेच्छखंडोद्भव' ( म्लेच्छखण्डमें उत्पन्न हुए ) राजासे है-म्लेच्चखण्डी को *यथा :-" सो गंगा के नीर एक नेच्छखंडका गजा ताने देखो। सो अपनी जरा नामा पत्री वसुदेव को परनाई।"
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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