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________________ प्रकाशक के दो शब्द स्वामी समन्तभद्रकी यह महनीय-कृति 'युक्त्यनुशासन', जो जिज्ञासु बोके लिये न्याय-अन्याय, गुण-दोष और हित अहिनका विवेक करानेवाली अचूक कसौटी है, आज तक हिन्दी ससारकी आँखोसे ओझल थी-हिन्दीमे इसका कोई भी अनुवाद नही हो पाया था और इसलिये हिन्दी जनता इसकी गुण गरिमासे अनभिज्ञ तथा इसके लाभोसे प्राय बंचित ही थी। यह देख कर बहुत दिनोंसे इसके हिन्दी अनुवादको प्रस्तुत कराकर प्रकाशितकरनेका विचार था। तदनुसार ही आज इस अनुपम कृतिको विशिष्ट हिन्दी अनुवादके साथ प्रकाशित करते और उसे हिन्दी जाननेवाली जनताके हाथोमे देते हुए बड़ी प्रसन्नता होती है। अनुवादको न्यायाचार्य प० महेन्द्रकुमारजी प्रोफेसर हिन्दू विश्वविद्यालय काशीने अपने 'प्राकथन' मे 'सुन्दरतम, अकल्पनीय सरलतासे प्रस्तुत और प्रामाणिक' बतलाया है । इससे ग्रन्थकी उपयोगिता और भी प्रकाशित हो उठती है। आशा है अपने हितकी ग्वोजमे लगे हुए हिन्दी पाठक इस ग्रन्थरत्नको पाकर प्रसन्न होंगे और आत्महितको पहचानने तथा अपनानेके रूप मे ग्रन्थसे यथेष्ट लाभ उठाने तथा दूसरोको उठाने देनेका भरसक प्रयत्न करे। श्रीमान् न्यायाचार्य प० महेन्द्रकुमारजीने इस ग्रन्थपर अपना जो 'प्राकथन' लिख भेजनेकी कृपा की है और जो अन्यत्र प्रकाशित है, उसके लिए वीरसेवामन्दिर उनका बहुत आभारी है और उन्हें हार्दिक धन्यवाद भेट करता है। जुगलकिशोर मुख्तार अधिष्ठाता वीरसेवामन्दिर
SR No.010665
Book TitleYuktyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages148
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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