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________________ समन्तभद्र-परिचय ४५ यह पद्यभी 'पूर्व' पाटलिपुत्र मध्यनगरे भेरी मया ताडिता' नामके परिचय-पद्यकी तरह किसी राजसभामे ही अपना परिचय देते हुए कहा गया है और इसमे भी वादके लिये विद्वानोको ललकारा गया है और कहा गया है कि 'हे राजन् | मैं तो वास्तवमे जैननिर्ग्रन्थ वादी हूँ, जिस किसीकी भी मुझसे वाद करनेकी शक्ति हो वह सामने आकर वाद करे ।' पहले से समन्तभद्रके उक्त दो ही पद्य आत्मपरिचयको लिये हुए मिल रहे थे, परन्तु कुछ समय हुआ, 'स्वयम्भू स्तोत्र' की प्राचीन प्रतियोको खोजते हुए, देहली - पंचायतीमन्दिरके एक अति जीर्ण-शीर्ण गुटके परसे मुझे एक तीसरा पद्य भी उपलब्ध हुआ है, जो स्वयम्भू स्तोत्र के अन्तमे उक्त दोनो पद्योके अनन्तर संग्रहीत है और जिसमे स्वामीजीके परिचय - विषयक दस विशेषण उपलब्ध होते हैं और वे हैं -१ आचार्य, २ कवि, वादिराट् ४ पण्डित ( गमक ), ५ दैवज्ञ ( ज्योतिर्विद् ) ६ भिषक (वैद्य), ७ मान्त्रिक ( मन्त्रविशेषज्ञ ), ८ तान्त्रिक ( तन्त्रविशेषज्ञ ), ( आज्ञासिद्ध और १० सिद्धसारस्वत । वह पद्य इस प्रकार है : " आचार्यो कविरहमहं वादिराट् पणिडतोहं दैवज्ञोहं भिषगहमहं मान्त्रिकस्तान्त्रिको । जलधिवलयामेखलायामिलाया राजन्नस्यां माज्ञासिद्धः किमिति बहुना सिद्धसारस्वतोहं ||३|| यह पद्य बड़े ही महत्वका है । इसमे वर्णित प्रथम तीन विशेषण - आचार्य कवि और वादिराट - तो पहले से परिज्ञात हैं- अनेक पूर्वाचार्योके ग्रन्थो तथा शिलालेखोंमें इनका उल्लेख
SR No.010665
Book TitleYuktyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages148
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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