SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युक्त्यनुशासन हुए 'करहाटक' नगर मे भी पहुंचे थे, जो उस समय बहुतसे भटोसे युक्त था, विद्याका उत्कट स्थान था और साथ ही अल्प विस्तारवाला अथवा जनाकीर्णं था । उस वक्त आपने वहॉके राजापर अपने वाद-प्रयोजनको प्रकट करते हुए, उन्हे अपना तद्विषयक जो परिचय एक पद्यमे दिया था वह श्रवण बेल्गोलके शिलालेख नं. ५४ मे निम्न प्रकारसे संग्रहीत है पूर्व पाटलिपुत्र-मध्यनगरे भेरी मया ताडिता पश्चान्मालव-सिन्धु-ठक्क-विषये कांचीपुरे वैदिशे । प्राप्तोऽहं करहाटकं बहुभट विद्योत्कट सकटं वादार्थी विचराम्यहं नरपते शादुलविक्रीडित ॥ इस पद्यमे दिये हुए आत्मपरिचयसे यह मालूम होता है कि करहाटक पहुंचने से पहले समन्तभद्रने जिन देशो तथा नगरोमे वादके लिये विहार किया था उनमे पाटलिपुत्रनगर, मालव (मालवा ) सिन्धु, ठक्क (पंजाब) देश, कांचीपुर (कांजीवरम् ) और वैदिश (भिलसा) ये प्रधान देश तथा जनपद थे जहाँ उन्होने वादकी भेरी बजाई थी और जहाँ पर प्राय किसी ने भी उनका विरोध नहीं किया था।' १ समन्तभद्रके इस देशाटनके सम्बन्धमे मिस्टर एम० एस० रामस्वामी प्राय्यगर अपनी 'स्टडीज इन साउथ इन्डियन जैनिज्म' नामकी पुस्तक मे लिखते हैं___ 'यह स्पष्ट है कि समन्तभद्र एक बहुत बडे जैनधर्मप्रचारक थे, जिन्होंने जैनसिद्धान्तो और जैन श्राचारोंको दूर दूर तक विस्तारके साथ फैलानेका उद्योग किया है, और यह कि जहा कही वे गये हैं उन्हें दूसरे
SR No.010665
Book TitleYuktyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages148
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy