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________________ समन्तभद्र-परिचय ___ (४) वर्द्धमानसूरिने, वराङ्गचरितमे, समन्तभद्रको 'महाकवीश्वर' 'कुवादिविद्या-जय-लब्ध-कीर्ति, और 'सुतर्कशास्त्रामृतसारसागर' लिखा है और यह प्रार्थना की है कि वे मुझ कवित्वकांक्षी पर प्रसन्न होवे-उनकी विद्या मेरे अन्तःकरणमे स्फुरायमान होकर मुझे सफल-मनोरथ करे।' (५) श्री शुभचन्द्राचार्यने, ज्ञानार्णवमे, यह प्रकट किया है कि 'समन्तभद्र जैसे कवीन्द्र-सूर्यों की जहां निर्मलसूक्तिरूप किरणे स्फुरायमान हो रही हैं वहां वे लोग खद्योत-जुगनू की तरह हँसीके ही पात्र होते है जो थोडेसे ज्ञानको पाकर उद्धत है-कविता (नृतन संदर्भकी रचना ) करके गर्व करने लगते है।' (६) भट्टारक सकलकीर्तिने, पार्श्वनाथचरितमे, लिखा है कि 'जिनकी वाणी (ग्रन्थादिरूप भारती) संसारमे सब ओरसे मगलमय है और सारी जनताका उपकार करनेवाली है उन कवियोके ईश्वर समन्तभद्रको सादर वन्दन (नमस्कार) करता हूँ।' (७) ब्रह्मअजितने हनुमच्चरितमे, समन्तभद्रको 'दुर्वादियोकी वादरूपी खाज-खुजलीको मिटानेके लिये अद्वितीय 'महौषधि' बतलाया है। (८) कवि दामोदरने, चन्द्रप्रभचरितमे, लिखा है कि 'जिनकी भारती के प्रतापसे-ज्ञानभण्डाररूप मौलिक कृतियोके अभ्याससे समस्त कविसमूह सम्यगज्ञानका पारगामी हो गया उन कविनायक-नई नई मौलिक रचनाएँ करने वालोके शिरोमणियोगी समन्तभद्रकी मै स्तुति करता हूँ। () वसुनन्दी आचार्यने, स्तुतिविद्याकी टीकामे, समन्तभद्रको
SR No.010665
Book TitleYuktyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages148
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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