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________________ प्रस्तावना नामकी कोई सूचना मिलनी है ? सूचना जरूर मिलती है। स्वामीजीने स्वय ग्रन्थको ४८वी कारिकामे 'यक्त्यनुशासन'का निम्न प्रकारसे उल्लेख किया है"दृष्टागमाभ्यामविरुद्धमर्थप्ररूपणं युक्त्यनुशासन ते " . इसमे बतलाया है कि 'प्रत्यक्ष और आगमसे अविरोधरूप जो अर्थका अर्थसे प्ररूपण है उसे 'युक्त्यनुशासन' कहते हैं और वही ( हे वीर भगवन् । ) आपको अभिमत है-अभीष्ट है।' प्रन्थका सारा अर्थप्ररूपण युक्त्यनुशासनके इसी लक्षणसे लक्षित है, इसीसे उसके सारे शरीरका निर्माण हुआ है और इसलिये 'युक्त्यनुशासन' यह नाम ग्रन्थकी प्रकृतिके अनुरूप उसका प्रमुख नाम है । चुनॉचे ग्रन्थकारमहोदय, ६३वीं कारिकामे ग्रन्थके निर्मारणका उद्दश्य व्यक्त करते हुए, लिखते हैं कि 'हे वीर भगवन् । यह स्तोत्र आपके प्रति रागभावको अथवा दूसरोंके प्रति द्वेषभावको लेकर नही रचा गया है, बल्कि जो लोग न्याय अन्यायको पहचानना चाहते है और किसी प्रकृतविषयके गुण-दोषोंको जाननेकी जिनकी इच्छा है उनके लिये यह हितान्वेषणके उपायस्वरूप आपकी गुण-कथाके साथ कहा गया है। इससे साफ जाना जाता है कि ग्रन्थका प्रधान लक्ष्य भूले भटके जीवोको न्याय-अन्याय, गुणदोष और हित-अहितका विवेक कराकर उन्हें वीरजिन-प्रदर्शित सन्मार्गपर लगाना है और वह युक्तियोंके अनुशासन-द्वारा ही साध्य होता है, अतः ग्रन्थका मूलतः प्रधान नाम 'युक्त्यनुशासन ठीक जान पड़ता है। यही वजह है कि वह इसी नाम से अधिक प्रसिद्धिको प्राप्त हुआ है। 'वीरजिनस्तोत्र यह उसका दूसरा नाम है, जो स्तुतिपात्रकी दृष्टिसे है, जिसका और जिसके शासनका महत्व इस ग्रन्थमे ख्यापित किया गया है। ग्रन्थके मध्यमे प्रयुक्त हुए किसी पदपरसे भी ग्रन्थका नाम रखनेकी प्रथा है, जिसका
SR No.010665
Book TitleYuktyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages148
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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