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________________ प्रस्तावना ग्रन्थ-नाम १ इस ग्रन्थका सुप्रसिद्ध नाम 'युक्त्यनुशासन' है । यद्यपि ग्रन्थके आदि तथा अन्तके पद्योंमे इस नामका कोई उल्लेख नही है - उनमे स्पष्टतया वीर - जिनके स्तोत्रकी प्रतिज्ञा और उसीकी परिसमाप्तिका उल्लेख है और इससे प्रन्थका मूल अथवा प्रथम नाम 'वीरजिनस्तोत्र' जान पड़ता है - फिर भी ग्रन्थकी उपलब्ध प्रतियों तथा शास्त्र भण्डारोंकी सूचियोंमें 'युक्त्यनुशासन' नामसे ही इसका प्राय उल्लेख मिलता है। टीकाकार श्रीविद्यानन्दाचार्यने तो बहुत स्पष्ट शब्दों में टीकाके मगलपद्य, मध्यपद्य और अन्त्यपद्यमे इसको समन्तभद्रका 'युक्त्यनुशासन' नामका स्तोत्रग्रन्थ उद्घोषित किया है, जैसा कि उन पद्योंके निम्न वाक्यों से प्रकट है। " "जीयात्समन्तभद्रस्य स्तोत्र युक्त्यनुशासनम् ” ( १ ) " स्तोत्रे युक्त्यनुशासने जिनपतेवरस्य निःशेषतः " (२) ''श्रीमद्वीरजिनेश्वराऽमलगुणस्तोत्रं परीक्षेक्षणैः साक्षात्स्वामिसमन्तभद्रगुरुभिस्तत्त्वं समीच्याऽखिलम् | प्रोक्त युक्त्यनुशासनं विजयिभिः स्याद्वाद मार्गानुगैः” (४) । १ " स्तुतिगोचरत्व निनीषव' स्मो वयमद्य वीर" (१), 'नरागान्न. स्तोत्र भवति भवपाशच्छिदि मुनौ” (६३), "इति स्तुत शक्त्या श्र ेय. पदमधिगतस्त्व जिन मया । महावीरो वीरो दुरितपरसेनाभिविजये" (६४) ।
SR No.010665
Book TitleYuktyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages148
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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