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________________ समन्तभद्र भारती का० ३५ लिये उस सत् तथा अकारणरूप मदशक्ति के साथ हेतुका विरोध है, तो यह कहना ठीक नही, क्योकि वह मदशक्ति भी कथञ्चिन्नित्य है और उसका कारण यह है कि चेतनद्रव्यके ही मदशक्तिका स्वभावपना है, सवथा अचे. तनद्रव्योंमे मदशक्तिका होना असम्भव है, इसीसे द्रव्यमन तथा द्रव्येन्द्रियोके, जो कि अचेतन है, मदशक्ति नहीं बन सकती--भावमन और भावेन्द्रियोके ही, जो कि चेतनात्मक हैं, मदशक्तिकी सम्भावना है। यदि अचेतन द्रव्य भी मदशक्तिको प्राप्त होवे तो मद्यके भाजनों अथवा शराबकी बोतलोको भी मद अर्थात् नशा होना चाहिये और उनकी भी चेष्टा शराबियो जैसी होनी चाहिये, परन्तु ऐसा नहीं है। वस्तुतः चेतनद्रव्यमे मदशक्तिकी अभिव्यक्तिका बाह्य कारण मद्यादिक और अन्तरङ्ग कारण मोहनीय कर्मका उदय है-मोहनीयकर्मके उदयविना बाह्यमें मद्यादिका सयोग होते हुए भी मदशक्तिकी अभिव्यक्ति नहीं हा सकती। चुनाँचे मुक्तात्माश्रोमे दानों कारणोंका अभाव होनेसे मदशक्तिकी अभिव्यक्ति नही बनती। और इसलिये मदशक्तिके द्वारा उक्त सद्कारणत्व, हेतुमें व्यभिचार दोष घटित नहीं हो सकता, वह चैतन्यशक्तिका नित्यत्व सिद्ध करनेमे समर्थ है। चौतन्यशक्तिका नित्यत्व सिद्ध होनेपर परलाकी और परलोकादि सब सुघटित होते है। जो लोग परलोकीको नही मानते उन्हे यह नहीं कहना चाहिए कि 'पहलेसे सत्रूपमे विद्यमान चैतन्यशक्ति अभिव्यक्त होती है।' ____ यदि यह कहा जाय कि अविद्यमान चैतन्यशक्ति अभिव्यक्त होती है तो यह प्रतीतिके विरुद्ध है, क्योकि जो सर्वथा असत् हो ऐसी किसी भी चोजकी अभिव्यक्ति नहीं देखी जाती। और यदि यह कहा जाय कि कथञ्चित् सतरूप तथा कथचित् असत्रूप शक्ति ही अभिव्यक्त हाती है तो इससे परमतकी-स्यावाद शासनकी-सिद्धि होती है, क्योकि स्याद्वादियोको उस चैतन्यशक्तिकी कायाकार-परिणत-पुद्गलोके द्वारा अभिव्यक्ति अभीष्ट है जो द्रव्यदृष्टि से सतरूप हाते हुए भी पर्यायदृष्टिसे असत् बनी हुई है। और इसलिये सर्वथा चैतन्यकी अभिव्यक्ति प्रमाण-बाधित है, जो
SR No.010665
Book TitleYuktyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages148
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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