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________________ का० ३५ युक्तयनुशासन ४१ भूति होती है उमो तरह भूतोंके - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तत्त्वोके - समागमपर चैतन्य उत्पन्न अथवा अभिव्यक्त होता है - वह कोई जुदा तत्त्व नही है, उन्हीका सुख-दुःख हर्ष-विषाद-विवर्त्तात्मक स्वाभाविक परिणाम वशेष है । और यह सब शक्तिविशेषकी व्यक्ति है, कोई दैवसृष्टि नही है । इस प्रकार यह जिनका कार्यवादी विद्धकर्णादि तथा अभिव्यक्तिवादी पुरन्दरादि चार्वाकोका - सिद्धात है उन अपने शिश्न (लिङ्ग) तथा उदरकी पुष्टिमे ही सन्तुष्ट रहनेवाले निर्लज्जों तथा निर्भयों के द्वारा हा ' कोमलबुद्धि-भोले मनुष्य - ठगे गये हैं ।" व्याख्या - यहा स्तुतिकार स्वामी समन्तभद्रने उन चार्वाकोकी प्रवृत्ति पर भारी खेद व्यक्त किया है जो अपने लिङ्ग तथा उदरकी पुष्टमे ही सन्तुष्ट रहते है— उसीको सब कुछ समझते है, 'खाओ, पीश्रा, मौज उडाम्रो' यह जिनका प्रमुख सिद्धात है, जो मास खाने, मदिरा पीने तथा चाहे जिससे - माता, बहिन पुत्रीसे भी - कामसेवन (भोग) करनेमे कोई दोष नही देखते, जिनकी दृष्टिमे पुण्य-पाप और उनके कारण शुभ-अशुभ कर्म कोई चीज नही, जो परलोकको नहीं मानते, जीवको भी नही मानते और परिपक्वबुद्ध भोले जीवोको यह कह कर ठगते है कि -- ' जानने वाला जीव काई जुदा पदार्थ नही है, पृथ्वी जल अग्नि र वायु ये चार मूल तत्त्व अथवा भूत पदार्थ है, इनके सयाग से शरीर - इन्द्रिय तथा विषय सज्ञाकी उत्पत्ति या अभिव्यक्ति हाती है और इन शरीर-इन्द्रिय-विषयसज्ञासे चैतन्य उत्पन्न अथवा अभिव्यक्त होता है । इस तरह चारो भूत चैतन्य के परम्परा कारण है और शरीर इन्द्रिय तथा विषयसज्ञा ये तीनो एक साथ उसके साक्षात् कारण हैं । यह चैतन्य गर्भसे मरण - पर्यन्त रहता है और उन पृथ्वी आदि चारो भूतोका उसी प्रकार शक्तिविशेष है जिस प्रकार कि मयके अगरूप पदार्थोंका आटा मिला जल, गुड और घातकी श्रादिका) शक्तिविशेष मद (नशा) है। श्रोर जिस प्रकार मदको उत्पन्न करनेवाले शक्तिविशेषकी व्यक्ति कोई दैवकृत-सृष्टि नही देखी जाती बल्कि मद्य के अंगभूत साधारण और साधारण पदार्थोंका समागम होने पर स्वभावसे 1
SR No.010665
Book TitleYuktyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages148
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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