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युगवीर-निबन्धावली
मेरे परोक्ष सुपरिचित विद्वान् पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार हैं।
मुख्तार जीने जो साहित्य-सेवा की है और विशेषत' जनसाहित्यके आलोचनात्मक अध्ययनकी जो परम्परा स्थापित की उसके विवरण देनेका न तो यह अवसर है और न उमकी आवश्यकता। जिन्हे जैन साहित्य व समाजकी प्रगति, हलचलो व प्रवृत्तियोमे सम्पर्क है वे भलीभाति जानते है कि मुख्तारजी इम क्षेत्रमे एक युगान्तरस्थापक कहे जा सकते हैं । मुझे अपने तथा अन्य कुछ मित्रोके मम्बन्धमे तो यह कहनेमे कोई मकोच नहीं कि हमसे पुरानी पीढीके विद्वानोमें स्वर्गीय श्रद्धेय नायूरामजी प्रेमीके अनन्तर श्रीजुगलकिशोर मुख्तारका ही नाम स्मरण ग्राता है जिन्होने अपने लेखो और पुस्तको-द्वाग हमे माहित्य-सेवामे प्रवृत्त होनेकी स्फूर्ति प्रदान की तथा अध्ययन व लेखनकी उचित दिशाका मार्ग-दर्शन कगया। इसी कारण मैंने अपना परम सौभाग्य समझा छब इन वयोवृद्ध साहित्यसेवी विद्वान्ने अपने लेखोके इम मग्रहकी प्रस्तावना-रूपमे कुछ लिख देनेके लिये मुझे प्रामत्रित किया।
अाजसे कोई ६-७ वर्ष पूर्व सन् १६५६ मे मुख्तारजीका 'जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश' शीर्षकसे उनके ३२ लेखोका संग्रह प्रकाशित हया था। उसके प्रकाशकीय वक्तव्यमें कहा गया था कि "मुख्तारजीके लेखोकी सख्या इतनी अधिक है कि यह मग्रह कई खडोमे प्रकाशित करना होगा। इस प्रथम दडमे ही ७५० के लगभग पृष्ठ हो गये है । दूसरे वडामे भी प्राय इतने-इतने ही पृष्ठोकी सभावना है।" उस प्रथम वडके लेखोमे ही अध्येतानो व साहित्यकारोको बडी सहायता मिली। मुख्तारजीकी जिन पूर्व बोजो-शोधोको जाननेके लिये जैनहितैषी व अनेकान्त आदि पत्रिकामोंकी पुरानी फाइले ढूंढनेमे बडी हैरानी उठानी पड़ती थी, वह अब नहीं रही । इमी सुविधाके विस्तार के लिये मुख्तारजीके शेष लेवोके मन