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________________ युगबीर-निबन्धावती ., ' हा हम लोगोंके यह कितने दुर्भाग्यकी बात है कि जिस चीके नामसे ही हमको थरणा पाती थी,जिस चकि दर्शनमात्रसे कविमन) हो जाती थी और जिस चकि स्पर्शनमात्रसे स्तान करनेकी जरूरत होती थी वही चर्बो धीमें मिलकर हमारे पेटमे पहुंच रही है और पूजन-हवनके लिये पवित्र देवालयोमे जा रही है ।। इतने पर भी हम लोग हिन्दू तथा जैनी कहलानेका दम भरते हैं, हमको कुछ भी लज्जा अथवा शरम नहीं आती और न हम इसका कोई सक्रिय प्रतीकार ही करते है ।। जान पडता है हमने कभी इस बात पर गम्भीरताके साथ विचार ही नहीं किया कि पहले इतना सस्ता और अच्छा घी-दूध क्यो मिलता था? यदि हम विचार करते तो हमे यह मालूम हुए बिना न रहता कि पहले प्राय सभी गृहस्थी लोग दो-दो चार-चार गौएँ रखते थे, बडे प्रेमके साथ उनका पालन करते थे, गौ-मातामोको अपना जीवनाधार समझते थे और दूध न देने या रोमी होजाने आदि किसी कारणपर उनको कभी अपनेसे अलग नहीं करते थे, और यदि अलग करनेकी जरूरत ही आ पडती थी तो किसी ऐसे भद्र मनुष्यको समर्पण करते थे जो अपनेसे भी अधिक प्रेमके साथ उनको रखने और उनकी प्रतिपालना करनेवाला हो। परिणाम इसका यह होता था कि गौएँ कसाइयोंके हाथमे नहीं जाती थीं, घर घरमे घी-दूधकी नदियाँ बहती थी और सब लोग प्रानन्दके साथ अपना जीवन व्यतीत करते थे तथा हृष्ट पुष्ट बने रहते थे। परंतु माणकल हम लोग ऐसे प्रमादी अथवा बोन्टलमैन हो गये हैं कि हमने गौमोंका पालन करना बिल्कुल छोड़ दिया, हमे प्राणोकी आधारभूत गौत्रोका रखना ही भार मालूम होता है और हम यह कहकर ही अपना जी ठंडा कर लेते हैं कि "माय न बन्छी नीद भावे अच्छी !" उसीका यह फल है कि प्रतिदिन हजारो गोत्रोंके गलेपर बुरी फिरती है, बी-दूध हबसे ज्यावह महंगा हो गया और हम लोग शरीरसे कमजोर, कमहिम्मत तथा अनेक प्रकारके सेगके
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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