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________________ ४५ महावीरका सर्वोदयतीर्थ विप्र-क्षत्रिय-विट-शूद्रा' प्रोक्ता क्रियाविशेषत । जैनधर्मे परा' शक्तास्ते सर्वे बान्धवोपमा | -धर्म रसिक इसके सिवाय, किसीके कुलमे कभी कोई दोष लग गया हो तो उसकी शुद्धि की, और म्लेच्छो तककी कुलशुद्धि करके उन्हे अपनेमे मिलाने तथा मुनिदीक्षा आदिके द्वारा ऊपर उठानेकी स्पष्ट प्राज्ञाएँ भी इस धर्मशासनमें पाई जाती हैं । और इसलिये यह शासन * जैसा कि निम्न वाक्योमे प्रकट है - १ कुतश्चित्कारणाद्यस्य कुल सम्प्राप्त-दूषणम् । सोऽपि राजादिसम्मत्या शोधयेत्स्व यदा कुलम् ।। ४०-१६८।। तदास्योपनयाहत्व पुत्र-पौत्रादि-सन्ततौ ।। न निषिद्ध हि दीक्षा कुले चेदस्य पूर्वजा ॥४०-१६९।। २. स्वदेशेऽनक्षरम्लेच्छान्प्रजा-बाधा-विधायिन । कुलशुद्धि-प्रदानाद्य' स्वसाकुर्यादुपक्रम ॥४२-१७४।। -आदिपुराणे, जिनसेनाचार्य ३ "म्लेच्छभूमिजमनुष्याणा सकलसयमग्रहण कथ भवतीति नाऽऽशकितव्य। दिग्विजयकाले चक्रवर्तिना सह प्रार्यखडमागताना म्लेच्छराजाना चक्रवादिभि सह जातवैवाहिकसम्बन्धाना सयमप्रतिपत्तेरविरोधात् । अथवा त कन्यकाना चक्रवर्त्यादिपरिणीताना गर्भषत्पन्नस्य मातृपक्षापेक्षया म्लेच्छ-व्यपदेशभाज संयमसमवात् तथाजातीयकाना दीक्षाहत्वे प्रतिषेधाभावात् ।।" । --लब्धिसारटीका (गाथा १६३ वी) नोट- यहाँ म्लेच्छोकी दीक्षा-योग्यता, सकलमयमग्रहणकी पात्रता मौर उन साथ वैवाहिक सम्बन्ध आदिका जो विधान किया है वह सब कसायपाहडकी 'जयधवला' टीकामे भी, जो लब्धिसारटीकासे कईमौ वर्ष पहलेकी (हवी शताब्दीकी) रचना है, इसी क्रमसे प्राकृत जौर सस्कृत भाषामे दिया है । जैसा कि उसके निम्न शब्दोमेप्रकट है -
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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