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________________ बडा और छोटा दानी ४१५ हजार रुपये दानमे निकाले हैं और उस दानकी रकमसे एक धर्मार्थशुद्ध प्रौषधालय स्थापित किया है, जिसमे गरीब रोगियोकी सेवासुश्रूषा पर विशेष ध्यान दिया जाता है और उन्हे दवाई मुफ्त दी जाती है । सेठ साहब प्रौषधालयकी सुव्यवस्था पर पूरा ध्यान रखते हैं और अक्सर स्वयं भी सेवाके लिये प्रौषधालयमे पहुँच जाया करते है । (२) दूसरे सेठ ज्ञानानन्द है, जिन्हे सम्यग्ज्ञान- वधक साधनो के प्रचार और प्रसारमें बडा आनन्द प्राया करता है । उन्होने अपनी गाढी कमाई से दस हजार रुपये प्राचीन जैनसिद्धान्त-ग्रन्थोके उद्धारार्थ प्रदान किये है और उस द्रव्यकी ऐसी सुव्यवस्था की है जिससे उत्तम सिद्धान्त-ग्रन्थ बराबर प्रकाशित होकर लोकका हित कर रहे है । (३) तीसरे सज्जन लाला विवेकचन्द है, जिन्हे अपने समाजके बेरोजगार ( आजीविका-रहित ) व्यक्तियोको कष्टमे देखकर बडा कष्ट होता था और इसलिये उन्होने उनके दुख-मोचनार्थ अपनी शुद्ध कमाईमेसे दस हज़ार रुपये दान किये है । इस द्रव्यसे बेरोजगारोको उनके योग्य रोजगारमे लगाया जाता है - दुकाने खुलवाई जाती हैं, शिल्पके साधन जुटाये जाते है, नौकरियाँ दिलवाई जाती हैं और जब तक आजीविकाका कोई समुचित प्रबन्ध नही बैठता तब तक उनके भोजनादिकमे कुछ सहायता भी पहुँचाई जाती है । इससे कितने ही कुटुम्बोकी प्राकुलता मिटकर उन्हे प्रभयदान मिल 'रहा है । (४) चौथे सज्जन गवर्नमेटके पेशनर बाबू सेवाराम है, जिन्होने गवर्नमेट के साथ अपनी पेशनका दस हजार नकदमे समझौता कर लिया है और उस सारी रकमको उन समाजसेवकोकी भोजनव्यवस्था के लिये दान कर दिया है जो निस्वार्थ भाव से समाज-सेवाके लिये अपनेको अर्पित कर देना चाहते है परन्तु इतने साधन-सम्पन्न नही हैं कि उस दशामे भोजनादिकका खर्च स्वय उठा सके | इससे समाजमे निस्वार्थ सेवकोकी वृद्धि होगी और उससे कितना ही सेवा एव लोकहितका कार्य सहज सम्पन्न हो सकेगा । बाबू सेवारामजीने #
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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