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________________ वीतरामसे प्रायनायो? मगर देख सकता है। सब बयाकर इतना मनुमह और कीजिये कि मैंबल्दी ही इस संसारके पार हो बा। ___ यहाँ भक-वारा सन्तके विषय में जो कुछ कहा गया है बेसा उस सन्ताने स्वेच्छासे कुछ भी नहीं किया। उसने सो मतके मोजनादिकी म्यवस्थाके लिये किसीसे सकेत तक भी नहीं किया और न अपने योजन से कभी कोई पास ही उठाकर उसे दिया है, फिर भी उसके भोजनादिकी सब व्यवस्था हो गई। दूसरे भक्तजन स्वय ही बिना किसीकी प्रेरणाके उसके भोजनादिकी सुव्यवस्था करनेमे प्रवृत्त हो गये और वैसा करके अपना अहोभाग्य समझने लगे। इसी तरह सन्तने उस भकको लक्ष्य करके कोई खास उपदेश भी नहीं दिया, फिर भी वह भक्त उस सन्तकी दिनचर्या और प्रवाग्विसर्ग (मोनोपदेशरूप ) मुख-मुद्रादिक परसे स्वय ही उपदेश ग्रहण करता रहा और प्रबोधको प्राप्त होगया । परन्तु यह सब कुछ घटित होनेमे उस सन्तपुरुषका व्यक्ति व ही प्रधान निमित्तकारण रहा है - अले ही वह क्तिना ही उदासीन क्यो न हो। इसीसे भक्त-द्वारा उसका सारा श्रेय उक्त सन्तपुरुषको ही दिया गया है। इन सब उदाहरणो परसे यह बात सहज ही समझमें पा जाती है कि किसी कार्यका कर्ता या कारण होनेके लिये यह लाज़िमी(अनिवार्य ) अथवा ज़रूरी नही है कि उसके साथमे इच्छा, बुद्धि तथा प्रेरणादिक भी हो, वह उसके बिना भी हो सकता है पौर होता है। साथ ही, यह भी स्पष्ट हो जाता है कि किसी वस्तुको अपने हाथसे उठाकर देने या किसीको उसके देनेकी प्रेरणा करके अथवा आदेश देकर दिला देनेसे ही कोई मनुष्य दाता नही होता बल्कि ऐसा न करते हुए भी दाता होता है, जब कि उसके निमित्तसे, प्रभावसे, प्राश्रयमे रहनेसे, सम्पर्कमें मानेसे, कारणका कारण बनमेसे कोई वस्तु मिसीको प्राप्त हो जाती है । ऐसी रिमति परमवीतराम श्रीमहन्सानिदेवो कर्तृत्वाविवस्यका
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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