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________________ ३३६ युगवीर - निबन्धावली है -- भूकम्प श्राया करते हैं । और इसीसे जो साघु पुरुष - भले आदमी - होते हैं वे दूसरोके किये हुए उपकारो अथवा ली हुई सेवाश्रोको कभी भूलते नही हैं- -नहि कृतमुपकार साधवो विस्मरन्ति'बदले मे अपने उपकारियोकी अथवा उनके श्रादर्शानुसार दूसरोकी सेवा करके ऋणमुक्त होते रहते हैं। उनका सिद्धान्त तो 'परोपकाराय सता विभूतय' की नीतिका अनुसरण करते हुए प्राय यह होता है ― उपकारिषु य' साधु साधुत्वे तस्य को १ गुण अपकारिषु य साधु स साधु सद्भिरुच्यते ॥ - अर्थात् -- अपने उपकारियोके प्रति जो साधुताका- प्रत्युपकारादिरूप सेवाका - - व्यवहार करता है उसके उस साधुपनमे कौन बडाईकी बात है ? – ऐसा करना तो साधारण - जनोचित मामूलीसी बात है । सत्पुरुषोने उसे सच्चा साघु बतलाया है जो अपना अपकार एव बुरा करनेवालोके प्रति भी साधुताका व्यवहार करता हैउनकी सेवा करके उनके श्रात्मासे शत्रुताके विषको ही निकाल देना अपना कर्तव्य समझता है । ऐसे साधुपुरुषोवी दृष्टि मे उपकारी, अनुपकारी और प्रपकारी प्राय सभी समान होते हैं । उनकी विश्वबन्धुत्वकी भावनामे किसीका अपकार या अप्रिय श्राचरण कोई बाधा नही डालता । 'अप्रियमपि कुर्वाणो य प्रिय प्रिय एव स ' इस उदार भावनासे उनका श्रात्मा सदा ऊँचा उठा रहता है । वे तो सेवाधर्मके अनुष्ठान द्वारा अपना विकास सिद्ध किया करते है, और इसीसे सेवाधर्मके पालन में सब प्रकारसे दत्तचित्त होना अपना परम कर्तव्य समझते हैं । वास्तवमें, पैदा होते ही जहाँ हम दूसरोसे सेवाएँ लेकर उनके ऋरणी बनते है वहाँ कुछ समर्थ होने पर अपनी भोगोपभोगकी सामग्री जुटानेमे, अपनी मान-मर्यादाकी रक्षामें, अपनी कषायोको पुष्ट करनेमे और अपने महत्व या प्रभुत्वको दूसरों पर स्थापित
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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