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________________ महाजनी मंत्र दिया गया है और इस उच्चारणकी ऐसी प्रबल रूढि पड गई है कि किसीकों इसके मंत्र या मगलाचरण होनेका स्वप्नमे भी ध्यान नही आता पौर विचारे बालक इस कल्याणकारी मत्र तथा मगलपाठसे वचित रक्खे जाते हैं। इस अशुद्ध उच्चारणके कारणो पर जहाँ तक विचार किया जाता है तो मुख्यत दो कारण सामने आते हैं । एक तो यह कि इस महाजनी हिन्दीमे मात्राएँ नहीं होती, जिससे एक अक्षरका उच्चारण अनेक प्रकार हो जाता है। जैसे कि उक्त अक्षर-समूहमे रकारका उच्चारण एक स्थान पर 'रा' और दूसरे स्थान पर 'रे' किया जाता है, इसी तरह सकारका उच्चारण 'सै"सू''सी'के रूपमे तीन प्रकार और मकारका उच्चारण में' तथा 'मा'के रूपमे दो प्रकार किया जाता है। सारांश यह कि इम लिपिमे चाहे किसी अक्षरको किसी मात्राके साथ पढलो, चाहे बिना मात्राके । इसी लिये इस महाजनी हिन्दीको 'गन्दी' कहते हैं, जिसकी अनेक लोकोक्तियाँ प्रचलित हैं * । दूसरा कारण यह जान पडता है कि इस महाजनीको पढाने वाले प्राय अविद्वान् पाधा लोग होते हैं। वे विचारे इस बातको कहाँ पहुंच सकते हैं कि यह कोई मत्र अथवा मगलाचरण है। वे तो प्राय यह भी नहीं जानते कि राम, सन्त और सरस्वती किसको कहते हैं और सिद्ध किसका नाम है। फिर वे बालकोंसे किस प्रकार ऐसा शुद्ध उच्चारण करा सकते हैं ? इसीसे यह उपयुक्त प्रकार से पृथक् पृथक् अक्षरोंके उच्चारणकी रुढि पड गई है। * एक लोकोक्ति यह भी प्रसिद्ध है कि किसी मुनीमने लालाजीके अजमेर जानेकी सूचना और बड़ी बहीको आवश्यकता होने पर उसके भेजनेकी प्रेरणा करते हुए जो लिखा था कि "लालाजी मजमेर गये बड़ी बहीको भेज दो" वह “लालाजी माज मर गये बडी बहूको भेज दो" के रूपमे पड़ा गया, और ऐसा पढ़ते ही वहां हाहाकार मच गया ।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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