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________________ मिथ्या धारणा १५ कवि 'जोक' ने भी नफ्स को बड़ा मूजी क़रार देते हुए उसीको मारनेकी प्रेरणाकी है - किसी बेकसको ऐ बेदादगर । मारा तो क्या मारा ? जो खुद ही मर रहा हो उसको गर मारा तो क्या मारा ? न मारा आपको जो नाक हो अक्सीर बन जाता । अगर पारे को ऐ अक्सीरगर । मारा तो क्या मारा ? बडे मूजीको मारा नसे अम्माराको गर मारा । नहगो मजदहाओ शेरेनर मारा तो क्या मारा ? दूसरा आशय इस सिद्धान्तका यह भी निकाला जासकता है कि जब तक ज्ञानावरणीय प्रादिक कर्म, जो आत्माके परम शत्रु हैं और इस प्रामाको ससारमे परिभ्रमरण कराकर नाना प्रकारके कष्ट देते है, उदयमे ग्राकर इस आत्माको दुख और कष्ट देवे अथवा ईजा पहुँचावे उससे पहले ही हमको तप सयमादिरूप धर्माचरणके द्वारा उनको मार डालना चाहिए- उनकी निर्जरा कर देनी चाहिए जिससे वे हमको ईजा ( दुख न पहुँचा सके। इन दोनो प्राशयोंके अतिरिक्त उपर्युक्त सिद्धान्तका यह श्राशय कदापि नही हो सकता है कि किसी प्राणधारीका बध किया जावे । ऐसा श्राशय करनेसे दयाधमके सिद्धान्त में विरोध प्राता है । वह सिद्धान्त तब धर्ममयी हो जानेसे सर्वथा हेय ठहरता है और किसी भी दयाधर्मके माननेवालेको उस पर द्याचरण नही करना चाहिए । यह कैसी खुदगर्जी और अन्याय है कि जिस बातको हम अपने प्रतिकूल समझें या जिसे हम अपने लिए पसन्द न करे उसका प्राचरण दूसरोंके प्रति करे । इसीसे एक फार्सी कविने मी कहा है- "ब्रांच बर खुद न पसन्दी बर दीगरा मपसन्द " । अर्थात् जिस (व्यवहार) को तू अपने ऊपर पसन्द नही करता उसे दूसरो के ऊपर पसन्द मत कर।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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