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________________ असवर्ण और अन्तर्जातीय विवाह २५१ कुलकी रक्त-शुद्धि बिना किसी मिलावटके, अक्षरण चली आती हैउसकी पुष्टिमें नीचे लिखा वाक्य उद्धृत किया है. अनादाविह संसारे दुर्वारे मकरध्वजे । कुले च कामिनी-मूले का जाति-परिकल्पना ।। और इस वाक्यके द्वारा यह सूचित किया है कि 'जब ससारमे अनादिकालसे कामदेव दुनिवार चला आता है और कुलका मूल भी कामिनी है तब किसी 'जाति-कल्पना' को क्या महत्व दिया जा सकता है और उसके आधार पर किसीको क्या मद करना चाहिये। अत जाति-विषयक मद त्याज्य है। उसके कारण कमसे कम साधमियो अथवा समान प्राचारको पालनेवाली इन उपजातियोमे पारस्परिक (अन्तर्जातीय) सद्विवाहोंके लिये तो कोई रुकावट न होनी चाहिये।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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