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________________ असवर्ण और अन्तर्जातीय विवाह २४६ जाति भिन्न है और म्लेच्छोंमें भी मील, शक, यवन, शबरादिक कितनी ही जातियाँ हैं । जब आर्योंका म्लेच्छों अथवा भीलादिकोसे विवाह होता था तो वह भी अन्तर्जातीय विवाह था और बहुत बड़ा अन्तर्जातीय विवाह था। उसके मुकाबलेमें तो यह आर्यो-आर्योंकी जातियो अथवा उपजातियोके अन्तर्जातीय-विवाह कुछ भी गणनामे गिने जानेके योग्य नहीं है । इसके सिवाय पहले भूमिगोचरियोंके साथ विद्याधरोके विवाह-सम्बधका आम दस्तूर था, और उनकी कितनी ही जातियोका वर्णन शास्त्रोमे पाया जाता है। वसुदेवजीने भी अनेक विद्याधर-कन्याप्रोसे विवाह किया था, जिसमे एक 'मदनवेगा' भी थी और वह श्रीजिनसेनाचार्यके कथनानुसार गौरिक जातिके विद्याधरकी कन्या थी। वसुदेवजी स्वय गौरिक जातिके नही थे और इसलिये गौरिक जातिकी विद्याधर-कन्यासे विवाह करके उन्होने उपजातियोकी दृष्टिसे भी स्पष्ट रूपसे अन्तर्जातीय विवाह किया था, इसमे सदेह नही है। आबूके तेजपाल-वस्तुपालवाले जैन मदिरमे एक शिलालेख सवत् १२६७ का लिखा हुआ है, जिससे मालूम होता है कि प्राग्वाट (पोरवाड) जातिके तेजपाल जैनका विवाह 'मोढ' जातिकी सुहडादेवीसे हुआ था । इस लेखका एक प्रश जो जैनमित्र ( ता० २३ अप्रैल सन १९२५ ) मे प्रकाशित हुआ, इस प्रकार है -- __ "ॐ सक्त १२६७ वर्ष वैशाख सुदी १४ गुरौ प्राग्वाट ज्ञातीन चड प्रचड प्रसादमह श्री सोमान्वये मह श्रीअसराज सुत मह श्रीतेजपालेन श्रीमत्पत्तन वास्तव्य मोढ ज्ञातीय ठ० जाल्हण सुत ठ० पाससुताया ठकुराज्ञी सतोषा कुक्षिसभूताया महश्री तेज पाल द्वितीय भार्या महश्री सुहडादेवया श्रेयाथं । " ___ यह आधुनिक उपजातियोमें, आजसे करीब ७०० वर्ष पहलेके अन्तर्जातीय-विवाहका एक नमूना है और तेजपाल नामके एक बड़े ही प्रतिष्ठित तथा धर्मात्मा पुरुष-द्वारा प्रस्तुत किया गया है । इसी
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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