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________________ सुधारका मूलमत्र और पतनका भी प्रायः ऐसा ही रहस्य है । उनका उत्थान और पतन भी उनके साहित्य-प्रचारकी हालत पर अवलम्बित है।' माप किसी देश या समाजको जेसा बनाना चाहें उसमे वैसे ही साहित्यका पूर्ण-रीतिसे प्रचार कर दीजिये, वह उसी प्रकारका हो जायगा । उदाहरण के लिये,यदि आप यह चाहते हैं कि हिन्दी भाषाका भारतवर्षमें सर्वत्र प्रचार होजाय मौर आप उसे राष्ट्रभाषा बनानेकी इच्छा रखते हैं तोग्राप हिन्दी साहित्यका जीजानसे प्रचार कीजिये. स्वय हिन्दी लिखिये, हिन्दी बोलिए. हिन्दीमे पत्रव्यवहार हिन्दीमें कारोबार और हिन्दीमे वार्तालाप कीजिये,हिन्दी पत्रो और पुस्तकोको पढिये,उन्हे दूसरोको पढनेके लिये दीजिये अथवा पढनेकी प्रेरणा कीजिये. हिन्दीमे लेख लिखिये, हिन्दीमें पुस्तके निर्माण कीजिये, हिन्दीमें भाषण दीजिये और यह सब कुछ दूसरोसे भी कराइये। दृढताके साथ ऐसा यल कीजिये कि हिन्दीमे सब विषयोपर उत्तमोत्तम ग्रन्थ लिखे जाय । हिन्दी-लेखकोका उत्साह बढाइये, उन्हे लेखो तथा पुस्तकोंके तय्यार करनेके लिये अनेक प्रकारकी सामग्रीकी सहायता दीजिये और तरह-तरहके लेखो, चित्रो. व्याख्यानो वार्तालापो और व्यवहारोंके द्वारा हिन्दीका महत्व प्रगट करते हुए सर्व-साधारणमे हिन्दीका प्रेम उत्पन्न कीजिये। माथ ही, हिन्दी-ग्रन्थो तथा हिन्दी पत्रोकी प्राप्तिका मार्ग इतना सुगम कर दीजिये कि उनके लिये किसीको भी कष्ट न उठाना पडे। यह सब कुछ हो जाने पर प्राप देखेंगे कि हिन्दी राष्ट्र-भाषा बन गई। __इसी तरह यदि आप अपने देश या समाजका उत्थान चाहते हैं और उसके सुधारकी इच्छा रखते हैं तो आप उसमे उत्थानात्मक और सुधार-विषयक साहित्यको सर्वत्र फैलाइये अर्थात् अपने देश व समाजके व्यक्तियोको स्वावलम्बनकी शिक्षा दीजिये, उन्हें अपने पैरो पर खड़ा होना सिखलाइये, भाग्यके भरोसे रहने की उनकी आदत छुड़ाइये, भीख मांगने तथा ईश्वरसे वस्तुत, याचना और प्रार्थना करनेकी
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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