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________________ चारुदत्त सेठका शिक्षाप्रद उदाहरण १६१ खुल्लम खुल्ला घरमे डाल लेनेके अपराध पर उस समयकी जाति बिरादरीने चारुदत्तको जातिसे च्युत अथवा बिरादरीसे खारिज नहीं किया और न दूसरा ही उसके साथ कोई घृणाका व्यवहार किया गया। वह श्रीनेमिनाथ भगवानके चचा वसुदेवजी जैसे प्रतिष्ठित पुरुषोसे भी प्रशसित और सम्मानित रहा । और उसकी शुद्धता यहाँ तक बनी रही कि वह अन्तको उसके दिगम्बर मुनितक होनेमे भी कुछ बाधक न हो सकी। इस तरह पर एक कुटुम्ब तथा जाति-बिरादरीके सद्व्यवहारके कारण दो व्यसनासक्त व्यक्तियोको अपने उद्धारका अवसर मिला। ___ इस पुराने शास्त्रीय उदाहरणसे वे लोग कुछ शिक्षा ग्रहण कर सकते है जो अपने अनुदार विचारोके कारण जरा जरासी बात पर अपने जाति भाइयोको जातिसे च्युत करके उनके धार्मिक अधिकारोमे भी हस्तक्षेप करके उन्हे सन्मार्गसे पीछे हटा रहे हैं और इस तरह अपनी जातीय तथा सघशक्तिको निर्बल एव नि सत्व बनाकर अपने ऊपर अनेक प्रकारकी विपत्तियोको बुलानेके लिये कमर कसे हुए है। ऐसे लोगोको सघशक्तिका रहस्य जानना चाहिए और यह मालूम करना चाहिये कि धार्मिक और लौकिक प्रगति किस प्रकारसे हो सकती है । यदि उस समयकी जाति-विरादरी उक्त दोनो व्यसनासक्त व्यक्तियोको अपनेमे आश्रय न देकर उन्हें अपनेसे पृथक् कर देती, घृणाकी दृष्टिसे देखती और इस प्रकार उन्हे सुधरने का कोई अवसर न देती तो अन्तमे उक्त दोनो व्यक्तियोका जो धार्मिक जीवन बना है वह कभी न बन सकता । अत ऐसे अवसरोपर जाति-बिरादरीके लोगोको बहुत सोच समझकर, बड़ी दूरदृष्टिताके साथ काम करना चाहिए। यदि वे पतितोका स्वय उद्धार नही कर सकते तो उन्हें कमसे कम पतितोके उद्धारमे बाधक न बनना चाहिये और न ऐसा अवसर ही देना चाहिये जिससे पतित जन और भी अधिकताके साथ पतित हो जायें।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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