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________________ नौकरोंसे पूजन कराना १५५ - परन्तु यहाँ मामला इससे बिल्कुल ही विलक्षण है । जिनेन्द्रदेवकी पूजासे जिनेद्र भगवान्को कुछ सुख या माराम पहुंचाना प्रभीष्ट नही होता - - वे स्वतः अनतसुखस्वरूप हैं और न इससे भगवानकी प्रसन्नता या अप्रसन्नताका ही कोई सम्बन्ध है । क्योकि जिनेद्रदेव पूर्ण वीतरागी हैं- उनके आत्मामे राग या द्वेषका अश भी विद्यमान नही है - वे किसीकी स्तुति, पूजा तथा भक्तिसे प्रसन्न नही होते प्रौर न किसीकी निन्दा, अवज्ञा या कटुशब्दो पर अप्रसन्नता लाते हैं । उन्हे किसीकी पूजाकी ज़रूरत नही और न निन्दासे कोई प्रयोजन है । जैसा कि स्वामी समन्तभद्रके निम्न वाक्यसे प्रगट है न पूजयार्थस्त्वयि वीतरागे न निन्दया नाथ विवान्तवैरे । तथापि ते पुण्यगुणस्मृतिर्न पुनाति चित्तं दुरिताऽञ्जनैभ्य ॥ --- वृहत्स्वय भूस्तोत्र ऐसी हालत मे कोई वजह मालूम नही होती कि जब हमारा स्वयं पूजन करने के लिए उत्साह नही होता तब वह पूजन क्यो किराये के आदमियो- द्वारा सपादन कराया जाता है। क्या इस विषयमे हमारे ऊपर किसीका दबाव और जन है ? अथवा हमे किसीके कुपित हो जानेकी कोई आशका है ? यदि ऐसा कुछ भी नही है तो फिर यह व्यर्थका स्वाग क्यो रचा जाता है ? और यदि सचमुच ही पूजन न होनेसे जैनियोको परमात्मा के कुपित हो जानेका कोई भय लगा हुआ है और इसलिए जिस तिस प्रकार के पूजन- द्वारा खुशामद करके हिन्दू, मुसलमान और ईसाइयोकी तरह परमात्माको राजी और प्रसन्न रखनेकी चेष्टा करते हैं तो समझना चाहिए कि वे वास्तवमे जैनी नही है, जैनियोके वेषमे हिन्दू, मुसलमान या ईसाई हैं । उन्होने परमात्माके स्वरूपको नही समझा और न वास्तवमें जैनधर्मके सिद्धातोको ही पहचाना है । ऐसे लोगोको पिछले निबन्ध 'जिनपूजाधिकारमीमासा' मे 'पूजनसिद्धान्त' को पढ़ना और उसे अच्छी तरहसे समझना चाहिए। इसके सिवाय, यदि इस प्रकारके
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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