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________________ विवाहसमुद्देश्य १२७ अर्थात् वास्तवमें 'गृहिणी' (घरवाली) हीका नाम घर हैं। इंट, पत्थर, लकड़ी श्रादि समुदायका नाम घर नहीं है । साधारण बोल-चालमें भी 'घर' शब्द स्त्रीके ग्रंथ में व्यवहृत होता है - इस्तेमाल किया जाता है । जैसे एक शख्स कहता है कि मैं घर सहित श्राया हूँ, जिसका साफ अभिप्राय यह होता है कि 'मैं अपनी स्त्रीको साथ लाया हूँ' । इन सब बातों से गृहस्थके लिये 'गृहिणी' का होना और भी जरूरी पाया जाता है। वह धर्म-संग्रह में बहुत बडी सहायक होती है' । और इसीलिये संसार में विवाहको प्रथा प्रचलित हुई है। किसी खास पेयके निर्दिष्ट हो जाने पर जिस प्रकार रोगीको, उसकी हितकामनासे, दूसरे इच्छानुसार पेयोंके सेवनका निषेध किया जाता है उसी प्रकार विवाह द्वारा गृहस्थधर्मके, स्वीकार करने पर,, पुरुषमे पर-स्त्रीका और स्त्रीसे पर-पुरुषका त्याग कराया जाता है । विवाह के समय दोनोको प्रतिज्ञाएँ करनी होती हैं। इस तरह दोनो शीलव्रतको धारण करते हैं, जिसको परदारनिवृत्ति, स्वदार संतोष, स्वभर्तृ सतुष्टि और लघु ब्रह्मचर्यादि नामोंसे पुकारा जाता है । इससे बहुत बड़ा लाभ यह होता है कि ससारमे शान्ति स्थापित होती है, छीना-झपटीकी प्रथा उठ जाती है, वैर-विरोध बढने नही पाते और हर शख्स बिना किसी रोक-टोकके अपने विषयोको भोग सकता है। तथा प्रानन्दके साथ अपने धर्मादिक कार्यों का सम्पादन कर सकता है। विपरीत इसके, व्यभिचारका प्रचार होनेसे जगतमें प्रशान्ति फैल जाती, छीनाझपटीकी प्रथा बढ जाती, मनुष्योंका जीवन दु ख प्रर आकुलतामय बन जाता और उनका भविष्य बिगड जाता । इससे कहना पडता है कि विवाहकी यह रीति बहुत ही सोच-विचार कर जारी की गई है। स्त्री हो या पुरुष जो कोई भी विवाहके इस नियमका उल्लंघन करता है- अपने व्रतको तोड़ता है - वह राजासे दड १ नास्ति भार्याम के सहायो धर्मसंग्रहे । - महाभारत: --
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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