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________________ जैनियोंका प्रत्याचार ११७० जैनियोंने इन सब अत्याचारोंसे बढकर स्त्रीसमाज पर जो भारी अत्याचार किया है उसका नाम है स्त्रीसमाजको प्रशिक्षित रखना । स्त्रियो और बालिकाप्रोको विद्या न पढाकर जैनियोने उनके साथ ast ही शत्रुताका व्यवहार किया है। जिस विद्या और ज्ञानके बिना मनुष्य निद्रित, अचेत, पशु और मृतकके तुल्य वर्णन किये गये हैं और जिसके बिना सुख-शातिकी प्राप्ति नही हो सकती, उसी विद्या और ज्ञानसे, जैनियोने स्त्रियोको वचित रक्खा, यह इनका कितना बडा अन्याय है । जैनियोने स्त्रियोकी योग्यता और उनकी विद्यासम्पादन-शक्तिको न समझा हो, ऐसा नही, किन्तु 'लड़कियाँ पराए घरका धन और पराए घरकी चॉदनी हैं, वे हमारे कुछ काम नहीं श्री सकतीं।' इस स्वार्थमय वासनासे जैनियोने उन्हे विद्यासे विमुख रक्खा है । इस नीच विचारने ही जैनियोको अपनी सतानके प्रति ऐसा निर्दय बनाया और इतना विवेकहीन बनाया कि उन्होने स्त्रीसमाजके साथ पशु-सदृश व्यवहार किया, उन्हे जडवत् रखखा, काष्ठपाषाणकी मूर्तियाँ समझा और उन्हे अपनी श्र मोनति करने देना तो दूर रहा, यह भी खबर न होने दी कि ससार मे क्या हो रहा है । क्या यह थोडा अत्याचार है ? नही, इस प्रयाचारके करने में जैनी मनुष्यताका भी उल्लघन कर गये। इनसे पशुपक्षी ही अच्छे रहे, जो अपनी नर और मादा दोनो प्रकारकी सतानको समानदृष्टि अवलोकन करते हैं और उससे किसी भी प्रकारके प्रयुपकारकी वाछा न रखते हुए अपना कर्त्तव्य समझ कर सहर्ष उसका पालन-पोषण करते हैं । यहाँ पर मुझे यह लिखते हुए दुख होता है कि जैनियोका यह अत्याचार केवल स्त्रीसमाजको ही नही भोगना पडा, बल्कि पुरुषोको भी इसका हिस्सेदार बनना पडा है -- बालको पर भी इसका नजला टपका है। माता के प्रशिक्षित रहनेसे -- परिस्थितिके बिगड जाने से - वे भी शिक्षासे प्राय विहीन ही रहे हैं । हजारमें दस-पांचो
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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