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________________ जिन-पूषाधिकार-मीमांसा पापीछे पाया और कलंकीसे कलेकी मनुष्य भी श्रीजिनेंद्रदेवका पूजन कर सकता है और भक्तिभावसे जिनदेवका पूजन करके अपने प्रात्माके कल्यारमकी ओर अग्रसर हो सकता है। इसलिये जिसप्रकार भी बन सके सबको नित्यपूजन करना चाहिये । सभी नित्यपूजनके अधिकारी हैं और इसीलिये ऊपर यह कहा गया था कि इस नित्यपूजनपर मनुष्य, तियंच, स्त्री, पुरुष, नीच, ऊँच, धनी, निर्धनी, व्रती, अव्रती, राजा, महाराजा, चक्रवर्ती और देवता सबका समानाधिकार है । समानाधिकारसे यहाँ कोई यह अर्थ न समझ लेवे कि सब एक साथ मिलकर,एक थालीमे एक सदली या चौकीपर अथवा एक ही स्थानपर पूजन करनेके अधिकारी हैं, किन्तु इसका अर्थ केवल यह है कि सभी पूजनके अधिकारी हैं । वे, एक रसोई या भिन्न भिन्न रसोईयोसे भोजन करनेके समान, मागे पीछे, बाहर भीतर, अलग और शामिल, जैसा अवसर हो और जैसी उनकी योग्यता उनको इजाजत (आज्ञा ) दे, पूजन कर सकते हैं । ' दस्साधिकार . यद्यपि अब कोई ऐसा मनुष्य या जाति-विशेष नही रही जिसके पूजनाधिकारकी मीमासा की जाय - जैनधर्म में श्रद्धा और भक्ति रखनेवाले ऊँच-नीष सभी प्रकारके मनुष्योंको नित्यपूजनका अधिकार प्राप्त है-तथापि इतनेपर भी जिनके हृदयमे इस प्रकारकी कुछ शका अवशेष हो कि दस्से ( गोटे ) जेनी भी पूजन कर सकते हैं या कि नहीं, उनको इतना और समझ लेना चाहिये कि जैनधर्ममे दस्से' और 'बीसे' का कोई भेद नही है, न कही पर जैनशास्त्रोमे 'दस्से' और 'बीसे' शब्दोका प्रयोग किया गया है। जिस प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, इन चारो वर्णोसे बाह्य(बाहर) बीसोका कोई पांचवाँ वर्ण नही है उसी प्रकार दस्सोंका भी कोई भिन्न वर्ण नही है। चारो वरों में ही उनका भी अन्तर्भाव
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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