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________________ दोढसो गायानुं स्तवन णिरकमड." इति ज्ञातान्त्र अध्ययन मोलमे अर्य-चपणं मा दोवड रायवरकन्नाके वेवारे ते द्रौपदी, राजबरनी कन्या, जेणेच मजणवरे के ज्यां स्नान मजन करवातुं घरले, तेणेव उवागच्छड के० त्यां आवं. मजणवरं अणुपविमड क० मन्जनघरमां पगे. पहाया के० स्नान कयु. कयत्रनिकम्मा के० कयु के बलिकर्म पूजार्नु कार्य. अर्थात् इहां घरमां देहेरानी पूजा लेइए. ए देहेरावें स्नान पर का, शामाटे के विस्तार जिनपूजातो आगल कहेगे. कयकोउअमंगलपायच्छिना के० कौतुक ने निलकादिक, मंगल ने दधि दुर्वा अनतादिक-हज प्रायश्चित. दुम्स्त्रमादिकनां घातक ने, कय के० को ले जेणे, मुद्धपावमाई पत्याई परिहियाई के० शुद्ध जे उचल, पामाई के० देहरे जावा योग्य एवां बम्ब पडया है, मजणघरानो पडिणिग्कमह के० मन्जनयरमांयी नीकले. जेणेच जिणघर के ब्यां जिनयर हे त्यां आवं. जिणघ अणूपरिसड के० जिनघरमा पेशः पेशीने आलोए के.दीठे थक. जिनपडिमाण पणामं करंड कजिनमनिमाने प्रणाम करे. अहींयां पण जिनघर कहीं बोलान्यू: माहे जिनप्रतिमा ते जिन छः नहींनर गणघग्ने ए पाठ कहतां मृपावाद याय. हवे, लोमहन्ययं परामुसड के० मोगपीछी टे, एवं जहा मृरियाभो निणपडिमाओ अच्छड नहेव भाणियव्वं के० जम मृर्याभदेवता जिनमनिमान पूजे तम सबलोय विधि जाणवी ते अधिकार मृर्याभना त्यां लगे कहेवो. जाच धृवं डड के० यावत् धूप दह ने विस्तार पूर्व मयोभने अधिकार कयो के न्यांची जाणत्रों. ते धृप दहीन, वामजाणु अंचेड के० डावी ढींचण उत्री राखे. दाहिणं जाणु धरणितलनि निहट्ट के जमणो दींचण घरतीए थापः थापीने, निक्वुत्तों के त्रणवार, मुद्धाणं के० मस्तक, धरणितलंसि के० पृथ्वीतलपत्र, निवेमइ के थापे यापीन. ईसि पच्चुणमड के० लगारक नीच नमे. करयल जावक के हाथ जोडी दश नख भला करी मस्तके अंजली करीन, एवं वयासी के० एम कहे. नमुत्यु ण, अरिहंताणं भगवंनाणं के० नमस्कार यायो अरिहंत भगवंतप्रत्ये, जाव संपत्ताणं के० यावद सिद्धिगतिमत्ये पाम्या छो. यावत् शब्दं शुक्रस्तच संपूर्ण ययो कहवी. पछी वंदद के० बंदना कर, नमगड के० नमस्कार करे. जिणघरायो पडिणिक्खमा के जिनयरमांधी नीकलं. एनो विशेष अर्थ टीकायी जाणवा. अहीयां ते कुमति एम कहे जे जे द्रौपदी श्राविका न होती, ने पूजा करे एमां शुं ? एम कडे छ तेहने शिक्षा देतां श्राविका ठरावे छे. नारद देखीने नवि थई । उभी तेह सुजाणरे ॥ जाणीए तेणे ते श्राविका | अक्षर एहज प्रमाणरे ॥ शा० ॥१५॥ अर्थ-नारद देखीने नवि यह उभी के जद्रोपटी नारद आव्या तेबारे असंयमी जाणीने उभी न घड. वह मुजाण के० एहवी ते मुजाण डाही जाणिए. नेणे ते श्राविका के ते कारणे नेने श्राविका जाणीए. श्राविका विना असंयमी आगल उभा न यावं, वच सुरजश्चामीकर'
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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